संगम तीरे न होने का दुख

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह उन दिनों आई-नेक्स्ट अखबार के कानपुर एडिशन के लांचिंग एडिटर हुआ करते थे. 18 जनवरी 2007 को प्रकाशित यह लेख आई-नेक्स्ट में ही एडिट पेज पर छपा था. पेश है वही आलेख, हू-ब-हू… संगम तीरे न होने का दुख यशवंत सिंह अच्‍छा खासा जी-खा रहा हूं. फिर भी खुद को …

महानदी, पैरी एवं सोढूर नदियों के संगम स्थल पर राजिम कुंभ में आस्थावानों का मेला

रायपुर से करीब चालीस किमी दूर गरियाबंद जिले के राजिम कुंभ मेले में पहुंचकर जैसे आत्मा तृप्त हो गई.. छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के निजी सचिव मनोज शुक्ला जी ने मेरे लिए कुंभ स्थल तक जाने का प्रबंध किया.. कुंभ मेले में पहुंच कर मैंने बेहद विहंगम दृश्य देखा..जिधर भी मेरी नजर गई साधू संत भक्ति में लीन मिले.. यही नहीं दूर दराज से आए आम जन भी धुनी रमाए हुए आस्था के सागर में गोते लगाते मिले..

राजिम कुंभ 2017 : चलो नहा आएं… समापन महाशिवरात्रि के दिन..

12 वर्षों के अंतराल में देश के चार प्रमुख तीर्थस्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है. छत्तीसगढ़ के राजिम में यह उत्सव हर वर्ष माघी पूर्णिमा से आरंभ होकर महाशिवरात्रि पर पूर्ण होता है. इस बार का राजिम कुंभ विशेष महत्व लिए हुए है इसलिए राजिम कुंभ कल्प-2017 का नाम दिया गया है.  राजिम कुंभ लोगों के मन की सहज श्रद्धा, उनके जीवन की सहज आस्था, सामान्य उल्लास लगने वाले जीवन को अद्भुत उल्लास और पूर्णता से भर देता है. एक ओर जहाँ श्रद्धा के भाव से भरे होते हैं तो दूसरी तरफ मेले के उल्लास के चटख रंग भी यहाँ मौजूद हैं.

‘पत्रिका’ के स्टेट एडिटर अरूण चौहान दुर्घटना में बाल बाल बचे

इंदौर । आज उज्जैन में क्षिप्रा स्नान व महाकाल दर्शन कर वापस इंदौर लौटते समय साँवेर के पास सड़क दुर्घटना मे “पत्रिका” MP-CG के “राज्य संपादक” श्री अरुण चौहान बाल बाल बच गए। खुद गाड़ी ड्राइव कर रहे श्री चौहान सड़क पर अचानक कार के सामने आ गये श्वान को बचाने के चक्कर मे संतुलन खो बैठे तथा कार डिवायडर से टकराते हुवे सड़क से नीचे उतरकर 3 से 4 पलटी खा गयी।

सिंहस्थ के प्रचार में सरकारी खजाना लुटाती शिवराज सरकार

सिंहस्थ पर्व जैसे विशुद्ध धार्मिक आयोजन मे सरकार की भूमिका कानून व्यवस्था और यातायात प्रबंध के अलावा ज्यादा से ज्यादा साफ सफाई और पानी की आपूर्ति तक सीमित रहनी चाहिए।  इसके बरक्स उज्जैन मे सिंहस्थ सरकारी आयोजन बन कर रह गया है और साधु संत और अखाड़े अतिथि की भूमिका मे सिमट गए हैं। सब जानते हैं कि सिंहस्थ आस्था का पर्व है और धर्मप्रेमी जनता तथा अंधभक्ति और अंधविश्वास मे डूबे श्रद्धालु खुद ब खुद वहाँ पहुँचते हैं।उन्हे बुलाने के लिए प्रचार की कतई जरूरत नहीं होती है। पिछले तीन सिंहस्थ के समय मैं मध्यप्रदेश के सरकारी प्रचार विभाग में कार्यरत था और पर्व के समय वहाँ जाता भी रहा था। तब केवल नाम मात्र की सरकारी विज्ञापनबाजी होती थी.