जब मनोहर श्याम जोशी ने अमेरिकी लड़की की आवाज में एक हिंदी कवि से बात की…

Prabhat Ranjan : मनोहर श्याम जोशी जी की एक आदत थी आवाज बदल-बदल कर फोन पर बात करने की. कई बार वे लड़कियों की आवाज में अपने समकालीन लेखकों से बात करते थे. 60 के दशक में एक बार उन्होंने सेंट स्टीफेंस कॉलेज में पढने वाले एक हिंदी कवि को फोन किया और उनसे अमेरिकी लहजे में लड़की की आवाज में बात की और मिलने के लिए कनाट प्लेस के कॉफ़ी हाउस में बुलाया. कवि महोदय वहां पहुँच भी गए लेकिन वहां किसी अमेरिकी लड़की को न पाकर बहुत निराश हुए. बाद में सेंट स्टीफेंस में पढने वाले वह कवि हिंदी की बड़ी शख्सियत के रूप में जाने गए. बहुत बाद में एक दिन जोशी जी ने उनको उस घटना के बारे में बता दिया जिससे वे इतने नाराज हुए कि अपने हर सत्ता प्रतिष्ठान से उनको भरसक दूर ही रखा. एक बार मैंने कवि महोदय से कहा कि सबका व्याख्यान करवाते हैं जोशी जी का भी व्याख्यान करवाइए न. कवि महोदय ने मुझे घूरते हुए कहा कि उनमें गंभीरता नहीं है.

हिंदी साहित्य जगत में नया प्रयास : फोन करें और अपनी रचना इंटरनेट पर प्रकाशित करें…

जी हाँ! सहज, सरल, सुंदर. रचनाकार www.Rachanakar.org लगातार पिछले 11 वर्षों से हिंदी साहित्य की अंतहीन सामग्री को इंटरनेट पर प्रस्तुत करने में जुटा है. रचनाकार के रचनाकारों और पाठकों का निरंतर सहयोग के बगैर यह असंभव था, जिसके लिए हम आभारी हैं. अब एक कदम आगे बढ़ाते हुए, नवीन, उन्नत टेक्नॉलाज़ी का लाभ उठाते हुए, वाचिक रचना प्रकाशन को और अधिक सहज सरल बनाया जा रहा है. वैसे भी, आने वाला समय स्मार्ट टीवी का होगा, स्मार्ट उपकरणों का होगा, जिसमें रचनाओं का पठन-पाठन दृश्य-श्रव्य माध्यम से अधिक होगा. अब आप केवल एक फ़ोन कॉल कर अपना जीवंत रचना पाठ (लाइव ऑडियो पॉडकास्ट के रूप में) प्रकाशित कर सकते हैं. यानी आप फोन पर ही अपनी रचना का पाठ कर सकते हैं, और उसे रेकार्ड कर यूट्यूब अथवा अन्य पॉडकास्ट सेवा में प्रकाशित कर सकते हैं.

स्कूटी पर चलती हिंदी साहित्य की बुक शॉप

अंग्रेजी प्रकाशकों की नकलचेपी करते नए-नए फैशनेबुल हुए हिन्दी प्रकाशक लोकार्पण( बुक रिलीज) पर जितने पैसे खर्च कर रहे हैं, संजनाजी की पूरी दूकान में उस लोकार्पण में हाईटी पर खर्च किए जानेवाली रकम जितनी भी पूंजी नहीं लगी होगी..न तो उन्हें आक्सफोर्ड बुक सेंटर या इंडिया हैबिटेट, इंडिया इंटरनेशनल की सुरक्षा मिली है..इनकी न तो एफबी पर पेज है और न ही बाकी प्रकाशकों की तरह लाइक-कमेंट में अपना बाजार देख पाती हैं. जो है, सब धरातल पर, कुछ भी वर्चुअल नहीं.

पांडे, तिवारी और बोधिसत्व का बाभनावतार… तीनों एकसाथ गालियां बक रहे हैं : अनिल कुमार सिंह

Anil Kumar Singh : उदय प्रकाश जी को गरियाते -गरियाते खूंखार जातिवादी और सांप्रदायिक भेडियों का झुण्ड मुझ पर टूट पड़ा है. ये दुष्प्रचारक अपने झूठ की गटर में मुझे भी घसीट लेना चाहते हैं. दो कौड़ी के साम्प्रदायिकता और अन्धविश्वास फ़ैलाने वाले टी वी सीरियलों का घटिया लेखक मुझे गुंडा बता रहा है. ये परम दर्जे का झूठा है और अपने घटिया कारनामों के लिए शिवमूर्ति जैसे सरल और निश्छल लेखक को ढाल बनाता रहा है. इसे मेरी भाषा पर आपत्ति है. कोई बताओ कि ऐसे गिरे व्यक्ति के लिए किस भाषा का प्रयोग किया जाय. और, आमना -सामना होने पर इससे कैसा व्यवहार किया जाय.

रायपुर साहित्य उत्सव के पक्ष में : यह भव्य आयोजन निश्चय ही किसी यज्ञ से कम नहीं था

रायपुर साहित्य उत्सव संपन्न हुआ। इसकी शुरुआत से लेकर समापन के बाद तक फेसबुक पर तरह तरह के मुद्दे को लेकर फुसफुसाहट जारी है। कोई दमादारी से इसके पक्ष में आवाज उठा रहा है तो कई मित्र छत्तीसगढ़ के कुछ मुद्दों को पैनालिस्टों द्वारा नहीं उठाने को लेकर विधवा विलाप कर रहे हैं। इस आयोजन के पहले और समापन के बाद तक ढेरों ऐसी बातें हैं जो इस समारोह में शामिल होने वाले भी नहीं जान पाए होंगे या दिल्ली से टाइमलाइन पर पोस्ट करने वाले महसूस कर पाए होंगे। जिस दौर में अखबारों के पन्नों से साहित्यिक को लेकर जगह के आकाल पड़ने को लेकर अखबार मालिक व संपादकों को कोसा जाता है, उस दौर में एक ऐसा राज्य साहित्य का एक ऐसा भव्य उत्सव का आयोजन करता है, जिससे न केवल रचनाकार बेहतरीन सम्मान पाता है बल्कि उसे अच्छा मानेदय दिया जाता है, यह कम बड़ी बात नहीं है। हिंदी साहित्य वाले हमेशा पारिश्रमिक को लेके रोना रोते हैं। दिल्ली जैसे महानगर में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शायद अतिथियों को उतना मानदेय नहीं दिया जाता है जितना की छत्तीसगढ़ सरकार ने दिया।

शैलेंद्र सागर की रचनाओं पर लोग बिना तैयारी के आए और रूटीन ढंग से बोल गए

बहुत दिनों बाद लखनऊ में आज की शाम बड़ी सुखद बन गई। बीते कई सालों से कथाक्रम पत्रिका निकालने और कथा क्रम का आयोजन करने वाले शैलेंद्र सागर के रचना संसार पर कैफ़ी आज़मी सभागार में प्रगतिशील लेखक संघ ने एक संगोष्ठी आयोजित की। इस मौक़े पर शैलेंद्र सागर की रचनाओं के बहाने उन के व्यक्तित्व पर भी बात हुई। उन की नई पुरानी रचनाओं पर बात हुई, उनकी सादगी और संजीदगी की बात हुई, संकेतों में ही सही उनके शौक़ और आशिक़ी की बात हुई। लेकिन जो उनका सबसे बड़ा गुण है, उनकी संतई और उनकी तपस्या, इसी की बात नहीं हुई। जो ज़रूर होनी चाहिए थी।

फैजाबाद के हिंदुस्तान और दैनिक जागरण अखबार के ब्यूरो चीफों को साहित्य से इतनी घृणा क्यों है?

Anil Kumar Singh : कुछ दिनों पहले इलाहाबाद वि वि में मेरे प्राध्यापक रहे प्रो राजेंद्र कुमार जी का फैजाबाद आना हुआ. वे एक बेहद संजीदा इन्सान होने के साथ ही एक बहुत ही अच्छे शिक्षक भी हैं. एम् ए फाइनल में वे हम लोगों को उर्दू साहित्य का वैकल्पिक पेपर पढ़ाते थे. हमारी जो भी साहित्य, संस्कृति की समझ बनी उसमे गुरुदेव का बड़ा योगदान है. हम लोगों ने उनसे अनुरोध करके फैजाबाद प्रेस क्लब में मुक्तिबोध की ‘अँधेरे में’ कविता पर उनका व्याख्यान आयोजित किया.