प्रोफेशनल लाइफ के २८ साल में मैंने खूब भाड़ झोंकी है। करीब ढाई दशक तक मीडिया संस्थानों की शोषण की चक्की में खुद को हँसते- हँसते पिसवाया। जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर एक से एक निकृष्ट मालिकों के अधीन काम करने का कटु अनुभव रहा। कुछ संस्थानों की नौकरी को मैंने खुद छोड़ दिया तो कुछ संस्थानों ने मुझे निकाल दिया। प्रोफेशनल लाइफ के पहले पंद्रह साल में मुझे नौकरी जाने का थोड़ा दुःख भी होता था। मन में टीस उठती थी कि कठोर परिश्रम और सत्यनिष्ठा एक झटके में व्यर्थ चली गई, लेकिन पिछले एक दशक से मैं इस मामले मैं बिलकुल संवेदनहीन हो गया हूँ। नौकरी जाना कोई मसला नहीं।