सूर्यादय से पहले ही अस्त होता ‘सूर्या चैनल’

सूर्या चैनल लॉन्च हुआ नहीं लेकिन चैनल में अब तक पांच संपादक लाये और निकाले जा चुके हैं. बिस्कुट कंपनी प्रिया गोल्ड के मालिक बीपी अग्रवाल इस सूर्या चैनल को ला रहे हैं. इस वेंचर का हाल बेहाल करने में बीपी अग्रवाल के एक पोते का भी बड़ा हाथ है. ये महोदय चैनल के डिपार्टमेंटल हेड / एचओडी से बदतमीजी से बात करने में जरा भी नहीं झिझकते. ताजा मामला इस चैनल में आये पत्रकार एसएन विनोद का है. एसएन विनोद के आने और जाने का ठीक से किसी को पता ही नहीं चला.

‘देशद्रोही’ खोजते दीपक चौरसिया!

मीडिया मंडी पर मीडिया ‘ट्रायल’ के संगीन आरोप लगते रहे हैं। समाज व देशहितकारी मुद्दों पर सकारात्मक दिशा दे अगर ‘ट्रायल’ होते हैं तो उनका स्वागत है किंतु जब मीडिया मंडी के न्यायाधीश सकारात्मक दिशा की जगह नापाक विचारधारा थोप नकारात्मक दिशा देने लगें, मामला अदालत में लंबित होने के बावजूद आरोपियों को  सिर्फ अपराधी नहीं देशद्रोही तक घोषित करने लगे, कानून और सबूतों को ठेंगे पर रख फैसले सुनाने लगे तब, मंडी के दलालों को कटघरे में खड़ा किया जाएगा ही।

पत्रकारिता जीने का तरीका है, यह पाठ एसएन विनोद ने मुझे पढ़ाया : पुण्य प्रसून बाजपेयी

मौजूदा दौर में पत्रकारिता करते हुये पच्चीस-छब्बीस बरस पहले की पत्रकारिता में झांकना और अपने ही शुरुआती करियर के दौर को समझना शायद एक बेहद कठिन कार्य से ज्यादा त्रासदियों से गुजरना भी है। क्योंकि 1988-89 के दौर में राजनीति पहली बार सामाजिक-आर्थिक दायरे को अपने अनुकूल करने के उस हालात से गुजर रही थी और पत्रकारिता ठिठक कर उन हालातों को देख-समझ रही थी , जिसे इससे पहले देश ने देखा नहीं था। भ्रष्टाचार के कटघरे में राजीव गांधी खड़े थे। भ्रष्टाचार के मुद्दे के आसरे सत्ता संभालने वाले वीपी सिंह मंडल कमीशन की थ्योरी लेकर निकल पड़े और सियासत में साथ खड़ी बीजेपी ने कमंडल थाम कर अयोध्या कांड की बिसात बिछानी शुरु कर दी। और इसी दौर में नागपुर से हिन्दी अखबार लोकमत समाचार के प्रकाशन लोकमत समूह ने शुरू किया जिसका वर्चस्व मराठी पाठकों में था।

जब पीएम ने ‘बाजारू’ कहा था तो चुप रहे, अब उनका मंत्री ‘वेश्या’ कह रहा तो आगबबूला क्यों?

Sn Vinod : “बाजारू” और “वेश्या” पत्रकार? अभी-अभी फ़रवरी में दिल्ली विधान सभा चुनावप्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मीडिया को “बाज़ारू” निरुपित किया था, तब मीडिया मौन रह गया था।दिन-भर टी वी पर ताल ठोक के विशेष या फिर बड़ी बहस में देश की धड़कन पर चर्चा करने वाले स्वघोषित महान पत्रकारों के लिए वह बहस का विषय नहीं बना था। बड़े समाचार पत्रों ने भी अनदेखी की।

एसएन विनोद के कारण मीडियाकर्मी लड़ने को बाध्य हुए और जीते

एक छोटी लड़ाई तो हम जीत गए। ठीक एक माह पहले जब जिया इंडिया के कर्मियों ने तीन महीने का बकाया वेतन मांगा तो देश के महान अवसरवादी संपादक एसएन विनोद ने कहा था- ‘मैं एक पैसा नहीं दूंगा, तुम लोग कोर्ट में जाओ।’ उनका ये अति प्रेरक वाक्य सुन कर हम कोर्ट में चले गए. तब विनोद जी ने कुछ कर्मियों को फोन कर के ये कहा कि – ‘कई लोग क्लेम वापस ले रहे हैं, तुम भी ले लो तो कल ही तुम्हारा पेमेन्ट कर दिया जायेगा।’

‘जिया इंडिया’ मैग्जीन के बुरे दिन, मीडियाकर्मियों को तीन महीने से वेतन नहीं

पिछले दिनों पत्रकार एसएन विनोद के नेतृत्व में ‘जिया इंडिया’ नामक एक राष्ट्रीय हिंदी मैग्जीन लांच हुई थी. इस मैग्जीन को लांच करने से पहले जिया न्यूज नामक चैनल को बंद कर सैकड़ों मीडियाकर्मियों को पैदल कर दिया गया था. उन्हीं विवादों और आरोपों के बीच जिया इंडिया नामक मैग्जीन लांच हुई थी. अब खबर है कि जिया न्यूज की तरह हाल जिया इंडिया का भी होने जा रहा है. तीन-तीन महीने से यहां सेलरी नहीं मिली है. पत्रकारों का हाल बेहाल है.

नहीं पहुंचे प्रमुख अतिथि, ‘जिया इंडिया’ मैग्जीन की लांचिंग फ्लॉप

रोहन जगदाले को अब समझ में आ रहा होगा कि मीडिया का क्षेत्र बाकी धंधों-बिजनेसों से अलग है और जो इसे धूर्तता, चालाकी, कपट, क्रूरता के साथ चलाना चाहता है उसे अंततः निराशा हाथ लगती है और करोड़ों गंवाकर हाथ जलाकर एक न एक दिन इस मीडिया क्षेत्र से बाहर निकलने को मजबूर हो जाना पड़ता है. यकीन न हो तो पर्ल ग्रुप के न्यूज चैनलों और मैग्जीनों का हाल देख लीजिए. पी7न्यूज, बिंदिया, मनी मंत्रा.. सबके सब इतिहास का हिस्सा बन गए. खरबों रुपये गंवाकर इसके मालिक को मीडिया से कुछ नहीं मिला. इसलिए क्योंकि मीडिया हाउस के शीर्ष पदों पर गलत लोगों को बिठाया गया और मीडिया हाउस खोलने का मकसद मूल कंपनी के छल-कपट को छिपाना-दबाना घोषित किया गया.

जिया प्रबंधन जीता, बेचारे बन मीडियाकर्मी मन मसोस कर घर लौट गए

: एसएन विनोद का खेल और जिया न्यूज़ का सच : आखिरकार चैनल की दुनिया में फैली बेरोज़गारी और कर्मचारियों की मजबूरी का फायदा उठाकर जिया न्यूज़ के मालिक रोहन जगदाले और इस मालिक को अपना दत्तक पुत्र मानने वाले एसएन विनोद की जीत हो ही गई। कर्मचारियों को मैनेजमेंट की फेंकी रोटी उठानी पड़ी और मन मसोस कर सेलेटमेंट करना पड़ा। हर कर्मचारी को तीन माह के बदले एक महीने का कंपनसेशन देकर टरका दिया गया, जिसमें दो चेक 4 और 20 दिसंबर के थमाए गये।

कुलदीप नैयर, रामबहादुर राय, राहुल देव, एनके सिंह, पुण्य प्रसून किसके साथ खड़े हैं? हड़ताली मीडियाकर्मियों के संग या भ्रष्ट जिया प्रबंधन के साथ?

‘जिया न्यूज’ नामक चैनल में कार्यरत मीडियाकर्मी हड़ताल पर हैं. प्रबंधन एक झटके में इन्हें बेरोजगार करने का फरमान सुना गया है. पैसा न होने का हवाला दे रहा है. समुचित मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा है. पर दूसरी तरफ जिया न्यूज के सीईओ और ‘जिया इंडिया’ नामक मैग्जीन लांच करने में जुटे इसके प्रधान संपादक एसएन विनोद न सिर्फ प्रबंधन के साथ खड़े हैं बल्कि लाखों रुपये फूंक कर जिया इंडिया मैग्जीन की लांचिंग का समारोह कराने की तैयारियों में सक्रिय हैं. इस समारोह का जो कार्ड बंटवाया गया है उससे पता चलता है कि मैग्जीन को लांच नितिन गडकरी करेंगे, जिनका करीबी होने का दावा एसएन विनोद करते रहते हैं.

”मैंने एसएन विनोद की गलत नीतियों से नाराज होकर ‘जिया इंडिया’ से खुद इस्तीफा दिया”

‘जिया न्यूज’ नामक न्यूज चैनल के बंटाधार होने के बाद अब ‘जिया इंडिया’ नामक मैग्जीन की बारी है. लांच होने से पहले ही यह मैग्जीन विवादों में आ गई है. मैग्जीन के संपादक पद से इस्तीफा देने वाले कृपाशंकर ने भड़ास4मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि उन्हें मैग्जीन से हटाए जाने की जो बात सोशल मीडिया पर कही जा रही है, वह गलत है. कृपाशंकर के मुताबिक उन्होंने मैग्जीन के प्रधान संपादक एसएन विनोद की गलत नीतियों के विरोध में खुद इस्तीफा दिया और बाकायदा नोटिस पीरियड पूरा किया.

”जिया इंडिया” नाम की पत्रिका लांच होने से पहले ही संपादक कृपाशंकर को हटा दिया गया!

Abhishek Srivastava :  कल नोएडा के श्रमायुक्‍त के पास मैं काफी देर बैठा था। एक से एक कहानियां सुना रहे थे मीडिया संस्‍थानों में शोषण की। अधिकतर से तो हम परिचित ही थे। वे बोले कि टीवी पत्रकारों की हालत तो लेबर से भी खराब है क्‍योंकि वे वर्किंग जर्नलिस्‍ट ऐक्‍ट के दायरे में नहीं आते, लेकिन अपनी सच्‍चाई स्‍वीकारने के बजाय कुछ पत्रकार जो मालिकों को चूना लगाने में लगे रहते हैं, वे इंडस्‍ट्री को और बरबाद कर रहे हैं। जो नए श्रम सुधार आ रहे हैं, उसके बाद स्थिति भयावह होने वाली है। कई दुकानें बंद होने वाली हैं। उनसे बात कर के एक चीज़ यह समझ में आई कि समाचार-दुकानों को बंद करवाने में जितना मालिक का हाथ होता है, उससे कहीं ज्‍यादा मालिक की जेब पर गिद्ध निगाह गड़ाये संपादकों की करतूत काम करती है।