पंकज सुबीर हमारे समय के उन विशिष्ट उपन्यासकारों में है जिनके पास ‘कन्टेन्ट’ तो है ही उसे अभिव्यक्त करने की असीम सामर्थ्य भी है। किस्सा गोई की अद्भुत ताकत उनके पास है। ‘अकाल में उत्सव’ पंकज सुबीर का हाल में प्रकाशित उपन्यास है, जिसकी चर्चा हम यहां कर रहे हैं। पंकज सुबीर ने अपने पहले ही उपन्यास ‘ये वो सहर नहीं’ (वर्ष 2009) से जो उम्मीदें बोई थीं वे ‘अकाल में उत्सव’ तक आते-आते फलीभूत होती दिख रही हैं। नौजवान लेखक पंकज सुबीर इन अर्थों में विशिष्ट उपन्यासकार है कि वे अपने लेखन में किसी विषय विशेष को पकड़ते हैं और उस विषय को धुरी में रखकर अपने पात्रों के माध्यम से कथ्य का और विचारों का जितना बड़ा घेरा खींच सकते हैं, खींचने की कोशिश करते हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे विषयवस्तु, पात्रों और भाषा का चयन बड़ी संजीदगी से करते हैं और उसमें इतिहास और मनोविज्ञान का तड़का बड़ी खूबसूरती से लगाते हैं।
Tag: book review
टेरर पालिटिक्स पर वार करती किताब ’आपरेशन अक्षरधाम’
देश में कमजोर तबकों दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को दोयम दर्जे की स्थिति में बनाए रखने की तमाम साजिशें रचने तथा उसे अंजाम देने की एक परिपाटी विकसित हुई है। इसमें अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिम आबादी को निशाना बनना सबसे ऊपर है। सांप्रदायिक हिंसा से लेकर आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिमों को ही प्रताडि़त किया जाता है। इसमें राज्य व्यवस्था की मौन सहमति व उसकी संलिप्तता का एक प्रचलन निरंतर कायम है। राज्य प्रायोजित हिंसा के खिलाफ आंदोलनरत पत्रकार और डाक्यूमेंन्ट्री फिल्म निर्माता राजीव यादव और शाहनवाज आलम राज्य व्यवस्था द्वारा रचित उन्हीं साजिशों का ’ऑपरेशन अक्षरधाम’ किताब से पर्दाफाश करते हैं। यह किताब उन साजिशों का तह-दर-तह खुलासा करती है जिस घटना में छह बेगुनाह मुस्लिमों को फंसाया गया। यह पुस्तक अक्षरधाम मामले की गलत तरीके से की गई जांच की पड़ताल करती है साथ ही यह पाठकों को अदालत में खड़ी करती है ताकि वे खुद ही गलत तरीके से निर्दोष लोगों को फंसाने की चलती-फिरती तस्वीर देख सकें।
आपकी ‘जानेमन जेल’ तो मेरा भी दिल लूटकर ले गई
आदरणीय यशवंत भाई, अमेजोन ब्वॉय ने आज आपकी जानमेन जेल हाथों में रखी तो पता नहीं था दिन इसी के नाम करने वाला हूं। आफिस में पहला पन्ना खोला तो फिर रुका नहीं गया। आपकी जानेमन तो मेरा भी दिल लूटकर ले गई। सबसे पहले तो कुछ बेहतरीन किताबों के नाम सुझाने के लिए धन्यवाद और अफसोस है कि आपको जेल में चीफ साहब अंगुली कर गया। …खैर ये तो मजाक है लेकिन किताब बहुत सीरियस है।
पुस्तक समीक्षा : जमीं की प्यास में नदी की तलाश
हिन्दी कविता का यह इतिहास रहा है कि वह समय—समय पर अपनी परिधियों को तोड़ती रही है। अपने शिल्प के साथ कथ्य का भी समय—समय पर इसने परित्याग किया है। इसके पुराने इतिहास को देखने पर यह सहज ही सोचा और अनुमान लगाया जा सकता है। इसी परिवर्तन के क्रम में इसकी यात्रा गीत, नवगीत तथा मुक्तछंद कविता से होते हुए ग़ज़ल पर आकर ठहरती है। वैसे तो ग़ज़ल के बारे में यह घोषणा की जाती है कि हिन्दी में इसका प्रवेश उर्दू के रास्ते से हुआ है।
Subject: Arvind Mohan’s review of My book in your web portal
Dear Yashwantji
Someone pointed out to me about this review and I read. After reading I was shocked. While I have nothing to say about Shri Arvind Mohan or his credibility I strongly object to insinuations and innuendos in his article against my book and my credibility. Not that his review would undermine these, but I wish to set the record straight.