मदर्स डे और मौत मांगती एक मां

एक मां की कहानी, उन्हीं की जुबानी… मैं माया देवी. मेरी उम्र 92 साल है. मैं काशी बनारस की रहने वाली हूं. कहते हैं, काशी में मरने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान से पूछती हूं, राधा-माधव, कितने बार मुझे मरना होगा कि मोक्ष मिल जाए! जानते हैं, क्यों? क्यों कि मैं रोज हर-पल मर रही हूं। खुद का घर रहते हुए इन दिनों मेरा ठिकाना किराये का एक कमरा है। मैं चल नहीं सकती क्योंकि मेरा पैर मेरा साथ नहीं दे रहे। जानना चाहेंगे क्यों? क्योंकि तीन महीने पहले मेरी बहू कंचन ने मुझे जानवरों की तरहत पीटा, सीढ़ियों से ढकेल दिया। मर जाती तो अच्छा था। पर मौत ने दगा दिया। शायद जिदंगी मुझे और दुःख देना चाहती है।

माया देवी 92 साल की उम्र में अपनी बहू से पीड़ित है। बार-बार कानून और न्याय की चौखट पर पहुंची उनकी गुहार अनसुनी कर दी जाती रही। शायद इसलिए कि सत्ता बदली है, व्यवस्था नहीं।

संदीप के माता-पिता को घटना की जानकारी नहीं, सदमे के डर से बहन ने ताले में बंद किया

बालाघाट (म.प्र.) : पत्रकार संदीप कोठारी के अपहरण की खबर मिलते ही उनकी मां बेहोश हो गईं। पिता प्रकाश चंद्र कोठारी बदहवास से हो गए। रविवार शाम तक उनको पता नहीं था कि बेटे की हत्या हो चुकी है। बहन ने घर के बाहर इसलिए ताला लगा दिया है कि उनके घर कोई आया तो मां-पिता को संदीप की मौत का पता चल जाएगा। 

एंटी-मदर कविता

मदर्स-डे पर माँ के बारे में बहुत कुछ लिखा गया… माँ बहुत महान होती है, माँ की पूजा करनी चाहिए, माँ जैसी कोई नहीं आदि आदि… लेकिन आज की मॉडर्न माँ के बारे में क्या कहेंगे? सभी अख़बारों ने परंपरागत रूप में “अच्छी माँ” के बारे में ही छापा- कविता, कहानी, लेख सब में… लेकिन सतना से प्रकाशित अख़बार “मध्यप्रदेश जनसंदेश” के रविवारीय परिशिष्ट “शब्दरंग” में इसका उल्टा देखने को मिला. मदर्स-डे पर प्रकशित रवि प्रकाश मौर्य की ये कविता इन दिनों काफी चर्चित हो रही है.