गलती आउटलुक ने की है, बदनाम मुझे कर रहा है : अनिल पांडेय

Anil Pandey : पिछले दिनों आउटलुक पत्रिका में छपे एक इंटरव्यू पर विवाद गहराया है। आउटलुक ने दावा किया कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय का यह पहला इंटरव्यू है। रामबहादुर राय ने इस मसले पर यथावत पत्रिका के अपने अनायास स्तंभ में विस्तार से पूरे घटनाक्रम की चर्चा की है। अब जो सवाल उठ रहे हैं, उससे आउटलुक पीछे हट रहा है। चुप है। आखिर क्यों?

बिना सहमति इंटरव्यू छापे जाने से नाराज रामबहादुर राय ने आउटलुक को लिखा लेटर, एडिटर्स गिल्ड में मुद्दा उठाएंगे

केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) के अध्‍यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय का इंटरव्यू एक साप्ताहिक पत्रिका ‘आउटलुक’ ने छापा है जिसमें राम बहादुर राय को यह कहते हुए दिखाया गया है कि संविधान निर्माण में डॉ बीआर आंबेडकर की कोई भूमिका नहीं थी. आरएसएस से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व महासचिव राय के ‘आउटलुक’ को दिए साक्षात्कार के अनुसार राय ने कहा कि आंबेडकर ने संविधान नहीं लिखा था. आंबेडकर की भूमिका सीमित थी और तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी बीएन राऊ जो सामग्री आंबेडकर को देते थे, वे उसकी भाषा सुधार देते थे. इसलिए संविधान आंबेडकर ने नहीं लिखा था. अगर संविधान को कभी जलाना पड़ा तो मैं ऐसा करने वाला पहला व्यक्ति होऊंगा. 

मेनस्ट्रीम पत्रकारिता मूर्खता के प्रसार का व्यापार है, आउटलुक की कारस्तानी देखिये

Sanjaya Kumar Singh : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केरल की तुलना सोमालिया से कर गए। उसकी निन्दा हुई तो अमित शाह ने केरल सरकार को “नालायक” साबित करने के लिए कुपोषण से बच्चों की मौत का आरोप लगाया और आउटलुक के एक पुराने अंक का सहारा लिया। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन पूरे आत्मविश्वास के साथ। इस बारे में Prakash K Ray ने लिखा है, बहुत समय से मेरी यह दृढ़ मान्यता रही है कि मेनस्ट्रीम पत्रकारिता मूर्खता के प्रसार का व्यापार है।

गलत तथ्य छापने के कारण संसद में राजनाथ सिंह की हुई फजीहत के बाद ‘आउटलुक’ मैग्जीन ने माफी मांगी, पढ़िए माफीनामा

Outlook — Regret

In a Lok Sabha debate on November 30, 2015, Mr. Mohammad Salim, the honorable Member of Parliament of the CPI-M, referred to an Outlook cover story (“The Mirror States”, dated November 16, 2015).

सहारा कर्मियों की तकलीफ को ‘आउटलुक’ मैग्जीन ने भी दी आवाज, पढ़िए भाषा सिंह की रिपोर्ट

आमतौर पर मीडिया वालों की पीड़ा को दूसरे मीडिया हाउस तवज्जो नहीं देते. सहारा मीडिया के कर्मियों की तकलीफ को मुख्य धारा के मीडिया हाउस नहीं उठा रहे क्योंकि हर किसी के यहां कर्मियों का किसी न किसी रूप में शोषण-उत्पीड़न है. यही वजह है कि दैनिक जागरण के सैकड़ों कर्मियों की बर्खास्तगी और उन कर्मियों का आंदोलन किसी मीडिया हाउस के लिए खबर नहीं है.

Outlook Hindi को पूरे सम्मान के साथ यह चेक एक पत्र के साथ वापिस कर रहा हूं

Siddhant Mohan : बीते अप्रैल में हुए ‘संकटमोचन संगीत समारोह’ के लिए मैंने आउटलुक पत्रिका के चन्द्र प्रकाश, फिर बाद में आकांक्षा पारे के कहने पर समारोह पर एक लेख लिखा था और ग़ुलाम अली खान साहब का इंटरव्यू भी किया था. बीच में कई दफा एकाउंट नंबर पूछने, नाम की स्पेलिंग कन्फर्म करने के लिए फोन आए. कुछेक बार एचआर डिपार्टमेंट से, कुछेक बार आकांक्षा जी से. कई बार एसएमएस से डीटेल भी मांगे गए. अप्रैल में किए इस काम के जवाब में मुझे कल यानी 20 मई को(छः महीने से भी ज्यादा वक़्त बाद) चेक मिला. 720 रूपए का. नाम की स्पेलिंग गलत.

पीएम की चंडीगढ़ यात्रा के दौरान चौकसी के नाम पर पुलिस ने पत्रकार के पिता को उठाकर थाने में डाल दिया

चंडीगढ़ में एक न्यूज चैनल के पत्रकार अमित चौधरी जो अभी तक दूसरों की परेशानियों, उन पर हुए अत्याचारों को दिखाते और बताते रहे हैं, आज खुद उसका शिकार हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के चलते उनके साथ वो सब हुआ जिसे वह ‘तानाशाही, जुल्म, अत्याचार, प्रताड़ना और भयावह’ जैसे शब्दों के जरिये बयां करते हैं। यही नहीं, कारगिल युद्ध में देश के लिए दुश्मन से लोहा लेने वाले ब्रिगेडियर देवेंद्र सिंह के बेटे का निधन हो गया, उन्हें सेक्टर 25 के श्मशान घाट में बेटे का अंतिम संस्कार नहीं करने दिया गया। क्योंकि प्रधानमंत्री की रैली के चलते श्मशान घाट को पार्किंग में बदल दिया गया था। सोशल मीडिया के चलते अमित और ब्रिगेडियर देवेंद्र की तकलीफ का पता हमें लग भी गया लेकिन हजारों-लाखों लोग ऐसे हैं जिनके पास अपनी तकलीफ और पीड़ा बताने के लिए स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया का मंच नहीं है लेकिन असहनीय पीड़ा है।

ओशो के आगे

Yashwant Singh : कुछ नए बदलावों को महसूस कर रहा हूँ। खुद के भीतर। बाहर की दुनिया के प्रति बहुत मामूली जुड़ाव लगाव द्वेष राग शेष है। अंदर की यात्रा शुरू हो गई है। जैसे कोई बीज वर्षों से यूँ ही पड़ा हो और अब अचानक वो धरती से बाहर निकलने को मचल रहा हो। न आगे दौड़ जाने की ख्वाहिश है न पीछे बीते हुए को पकड़े रहने ज़िद। जिस क्षण में हूँ उसी संग प्रवाहित होने की कोशिश है। पहले भागने की सोचता था। पहले गुरु की तलाश में परेशान था। अब सब नियति पर छोड़ दिया है। जाहे विधि राखे राम। लालसाएं कामनाएं इच्छाएं पक कर टपकने लगी हैं। अब कैसे किससे क्यों संवाद करूँ। जो खुद ब खुद मिल रहा है वो अद्भुत अव्यक्त है।

‘आउटलुक’ की महिला पत्रकार को धमकियां

हैदराबाद : ‘आउटलुक’ पत्रिका ने एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के खिलाफ कथित अपमानजनक और आपत्तिजनक आलेख से पैदा हुए विवाद के बाद अपने संवाददाता को धमकी मिलने के मद्देनजर अब पुलिस का रूख किया है।

‘आउटलुक’ मैग्जीन ने महिला आईएएस अफसर को ‘आई कैंडी’ बता घटिया कार्टून छापा, अफसर ने लीगल नोटिस भेजा

हैदराबाद : एक महिला आईएएस अफसर जिसे जनता के अफसर के तौर पर जाना जाता है और जो सरकारी योजनाओं को लागू करने की दिशा में लेटेस्ट तकनीक के इस्तेमाल के लिए जानी जाती हैं, उसे ‘आउटलुक’ पत्रिका ने ‘आईकैंडी’ यानि ‘आंखों को लुभाने वाली’ बताते हुए एक घटिया किस्म का कार्टून प्रकाशित कर दिया है. साथ में एक आर्टिकल है जिसका शीर्षक है- ‘नो बोरिंग बाबू’. इसमें लिखा है कि हर मीटिंग में मौजूद महिला आईएएस अपनी खूबसूरत साड़ियों की वजह से फैशन स्टेटमेंट साबित होती हैं और मीटिंग में मौजूद लोगों के लिए आई कैंडी भी. आउटलुक मैगजीन में छपे कार्टून में महिला आईएएस अफसर को एक फैशन शो में रैम्प पर चलते दिखाया गया है.

ये तो ठीक बात नहीं, आउट लुक के संपादक को खेद प्रकट करना चाहिए

हिंदी आउटलुक पत्रिका के संपादक नीलाभ मिश्रा ने प्रो. जीएन साईबाबा पर अरुंधती रॉय के लिखे निबंध का जो अनुवाद अपनी वेबसाइट पर छापा है और शेयर किया है, उसमें अनुवादक का नाम ”दिव्‍यशिखा” लिखा है। मूल लेख का दो दिन पहले रियाजुल हक ने हिंदी में अनुवाद किया था जिसे ”हाशिया” ब्‍लॉग पर पढ़ा जा रहा है। {http://hashiya.blogspot.in/2015/05/blog-post_10.html?m=1}

आउट लुक संपादक नीलाभ मिश्रा

‘आउटलुक’ के मालिक, संपादक, स्पेशल करेस्पांडेंट हाईकोर्ट में तलब

गाज़ियाबाद पीएफ स्कैम मामले में आउटलुक पत्रिका द्वारा प्रकाशित लेख में ज्यूडिशरी को करप्ट कहे जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकील मनोज श्रीवास्तव की क्रिमिनल कंटेम्प्ट की अर्जी को मंजूर करते हुए पत्रिका से जुड़े कई लोगों को नोटिस जारी कर सभी को व्यक्तिगत तौर पर अदालत में तलब कर लिया है। 

आउटलुक वालों ने टाइम्स नाऊ वाले अर्नब गोस्वामी को विलेन बना दिया…

Arnab Goswami होने का मतलब… आउटलुक वालों ने टाइम्स नाऊ वाले अर्नब गोस्वामी को विलेन बना दिया. घोषणा कर दी कि अर्णब ने भारत में टीवी न्यूज की -हत्या- कर दी. ठीक है, मान लेते हैं कि आउटलुक वाले बहुत समझदार हो गए हैं (विनोद मेहता के जाने के बाद) और मैगजीन निकालते-निकालते अब उन्हें टीवी न्यूज की भी अच्छी खासी समझ हो गई है. हो सकता है कि इसके एडिटर साब ने टीवी न्यूज इंडस्ट्री में खबरों की महत्ता-गुणवत्ता पर कोई पीएचडी भी लिख डाली हो और कोई बड़ा सर्वे भी कराया हो (शायद सपने में).

19 साल पूरे होने पर आउटलुक ने शानदार विशेषांक निकाला

Vineet Kumar : रॉबिन जेफ्री की किताब मोबाईल नेशन के बाद सबसे बेहतरीन कंटेंट… आपने अभी तक आउटलुक का ये अंक नहीं खरीदा है तो खरीदकर रख लीजिए. आउटलुक पत्रिका की जिस साल शुरुआत हुई थी, उसी साल हिन्दुस्तान में मोबाईल आया था. पत्रिका ने ये बेहतरीन काम किया कि अपने 19 साल को लेकर ढोल-मंजीरा बजाने के बजाय 19 साल में बनती-बदलती हिन्दुस्तान की दुनिया पर अलग-अलग एंगिल से बेहतरीन लेख, इंटरव्यू और फीचर प्रकाशित किए हैं..इस पत्रिका को अगर किताबी शक्ल दे दी जाए तो हर लाइब्रेरी के लिए एक जरूरी किताब होगी.