दैनिक जागरण, अमर उजाला समेत कई अखबारों में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार विनय श्रीकर ने छह जनवरी 2019 को अपनी उम्र के सत्तर बरस पूरे किए. नोएडा में अपनी पत्नी के साथ रह रहे विनय का इकलौता पुत्र इन दिनों में विदेश में आईटी कंपनी में कार्यरत हैं.
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अखबार कोई भी हो, सबका हाल एक जैसा है
वैसे तो टीवी, मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा होने के कारण मुझे अखबार मंगाने-पढ़ने की जरूरत नहीं महसूस होती है। लेकिन आदतन एक अंग्रेजी एवं एक हिन्दी का अखबार मंगाता हूं। अखबार के पेज सिर्फ इस आस में पलटता हूं कि शायद मेरे पढ़ने लायक या फिर मेरी जानकारी बढ़ाने वाली कोई खबर मिल जाये। …
”बकवास 7×24” चैनल, चीखू ऐंकर और एक गधे का लाइव इंटरव्यू
विनय श्रीकर देश के सबसे लोकप्रिय खबरिया चैनल ”बकवास 7×24” का चीखू ऐंकर पर्दे पर आता है और इस खास कार्यक्रम के बारे में बताता है। ऐंकर– आज हम अपने दर्शकों को दिखाने जा रहे हैं एक ऐसा लाइव इंटरव्यू, जिसको देख कर वे हमारे चैनल के बारे में बरबस कह उठेंगे कि ऐसा कार्यक्रम …
स्मृति शेष : दिनेश ग्रोवर जितना मजेदार और जिन्दादिल इंसान कम ही देखा है
बड़ी ही मजेदार थी दिनेश ग्रोवर की जिन्दादिली… बहुत साल पहले की बात है। वयोवृद्ध पत्रकार एवं कवि-लेखक इब्बार रब्बी राजेन्द्र यादव की साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ में संपादन सहायक के तौर पर अवैतनिक सेवा दे रहे थे। रब्बी जी नवभारत टाइम्स से रिटायर हो चुके थे और आर्थिक रूप से परेशान चल रहे थे। रब्बी …
कल के हॉकर ही आज के टीवी ऐंकर हैं!
खबरिया चैनलों के ऐंकरों को मामूली से मामूली खबर पर गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाते देखता-सुनता हूँ, तो बरबस चालीस साल पहले के एक न्यूजपेपर हॉकर की याद ताजा हो जाती है। वह अखबार लेकर गोरखपुर शहर की गलियों-मुहल्लों में साइकिल पर सवार होकर घूमता रहता था। ठीक आजकल के टीवी ऐंकरों की तरह किसी खबर का ऐसे बेहूदे ढंग से हल्ला मचाता था कि सुनने वाले को लगता था कि जरूर कहीं कोई अनर्थकारी घटना हो गयी है। कौतूहल और उत्सुकता के मारे लोग उसे रोकने थे और न चाहते हुए भी अखबार की एक प्रति खरीद लेते थे।
पत्रकारिता के इस दौर में विनय श्रीकर का होना…
हिंदी पत्रकारिता के इस दौर में हम लोगों के बीच एक ऐसा सदाबहार और अदभुत पत्रकार मौजूद है जिसकी प्रतिभा का इस्तेमाल कोई मीडिया हाउस नहीं कर रहा है. साहित्य, इतिहास, पत्रकारिता, राजनीति सब पर गजब की पकड़ रखने वाले इस शख्स का नाम विनय श्रीकर है. आलेख लिखना हो या ग़ज़ल या कविता या गीत, लेक्चर देना हो या जीवन का पाठ पढ़ाना हो, विनय श्रीकर का जवाब नहीं. 68 साल के विनय श्रीकर के भीतर जो उर्जा, ओज और तेजी है, वह सोचने पर मजबूर कर देती है कि इन जैसे ही हम जैसों को कहते होंगे- बुड्ढा होगा तेरा बाप!.
उस जमाने के चोर कहलाने वाले नेता की संतई देखने वाली थी
1957 का प्रसंग है। पुराने सिक्के जा रहे थे। नया पैसा जगह बना रहा था। चुनाव का माहौल था। यह बात लखनऊ की है। मैं लखनऊ के हैदराबाद मुहल्ले में रहता था। हैदराबाद दो थे— नया हैदराबाद और पुराना हैदराबाद। मेरा घर नया हैदराबाद के जिस मकान में था उसका नाम है खन्ना विला। यह कोठीनुमा मकान अपने उसी पुराने ढांचे में आज भी मौजूद है। जुलूस का शोर-शराबा सारे दिन सुनाई पड़ता था। गली-मुहल्लों और सड़कों पर एक के बाद एक राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता और समर्थक नारे लगाते हुए परेड करते थे। एक नारा अभी तक याद आता है— ‘गली गली में शोर है, सी बी गुप्ता चोर है’। सी बी गुप्ता यानी चन्द्रभानु गुप्त। वह भारत की आजादी की जंग के अभिन्न अंग थे। काकोरी रेल डकैती कांड को अंजाम देने वाले क्रांतिकारियों के वह एक नामी और कुशल वकील के रूप में अनन्य सहयोगी थे। उनकी विचारधारा या पार्टी जो भी रही हो, इससे क्या लेना-देना।
‘आज’ अखबार के ‘उत्तरोत्तर आगे बढ़ने’ की दिलचस्प असलियत
पिछले दिनों मैं गोरखपुर गया हुआ था। एक रोज सुबह चार बजे रेलवे स्टेशन स्थित उस ठीहे पर जाना हुआ, जहां से हॉकर यानी समाचार वितरक घरों में बांटने के लिए विभिन्न अखबार खरीदते हैं। उनकी भाषा में कहें उठाते हैं। अखबार वाले इसे सेंटर बोलते हैं। एक जमाने में हॉकर यूनियन के अध्यक्ष रहे अमरनाथ जी से कुलाकात हुई। सत्तर बरस के हो चले हैं, पर उनकी मेहनत और जिन्दादिली वैसी की वैसी ही है। तीस-पैंतीस साल से मेरी उनसे दोस्ती है। शहर के अखबारी जगत की हलचलों से वाकिफ रहते हैं अमरनाथ जी। एक से एक किस्से सुनने को मिलते हैं उनसे। जब भी अपने शहर जाना होता है, हॉकरों की इस तीर्थस्थली पर एक-दो बार जरूर जाता हूँ। अतीत-मोह मुझे वहां खींच ही ले जाता है।
एक बादाकश ने तौबा करने की कसम खाई, इस खुशी में उम्र भर पी और पिलाई….
एक बार किसी ने मुझसे पूछा– आप शराब किस लिए पीते हैं। मैंने जवाब दिया– जो वजह मेरे जीने की है वही मेरे पीने की। उनका सर चकरा गया। वे कुछ न समझ पाये। ऐसे आदमी को समझाना भी नहीं चाहिए। असल में वे मुझे समझाना चाहते थे कि शराब पीना बुरी आदत है। इंसानों को बिना मांगे सुझाव देने की बुरी लत होती है, जिसे ठुकरा देने की मुझे लत है। मेरे हालात मेरे हमसफर हैं। मैं अपने हालात के आदेश पर चलता हूं। दूसरों की ही नहीं, मैं अपने दिल के सुझाव भी नहीं मानता। मेरा जनम किसी के सुझाव से नहीं हुआ। किसी के सुझाव को मैं अगले की जिंदगी में दखलंदाजी मानता हूं।
एमपी के एक नामी अखबार के मालिक ने नौकरी मांगने गए वरिष्ठ पत्रकार विनय श्रीकर से पूछा एक कठिन सवाल
पत्रकारों और पत्रकारिता के बारे में
अखबार वाले वो भी होते हैं, जो अखबार निकालते हैं और वो भी जो अखबार में नौकरी करते हैं। मैंने दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक भास्कर और कुछ दीगर अखबारों में नौकरी की है। वहां पाये अनुभवों के आधार पर यह आलेख लिख रहा हूं। सच बुरा लगता है पर सच में दम होता है। अखबार का मालिक काम देता है और काम लेता है। दाम जितना चाहता है उतना ही देता है। खबरनवीस नौकरी पा जाने का अहसान मानते हैं। खटते रहते हैं। रात-दिन डटे रहते हैं। खबरनवीस समाज में एक रुतबा पा जाते हैं। यही उनके लिए बहुत होता है। वे अपनी इतनी कीमती नौकरी बचाये रखने के लिए कुछ भी करने को आतुर रहते हैं। यही खबर का धंधा करने वालों और खबरनवीसों की दुनिया होती है।
पुण्यतिथि पर विशेष : मैंने सुन रखा था कि धूमिल अहंकारी और उजड्ड स्वभाव के हैं
सुदामा पाण्डेय उर्फ धूमिल की आज (10 फरवरी) पुण्यतिथि है। नवम्बर 1974 में वह ब्रेनट्यूमर के इलाज के लिए लखनऊ मेडिकल कालेज में भर्ती हुए थे। वहीं उनसे पहली मुलाकात हुई। उन दिनों मैं लखनऊ के नेशनल हेरल्ड अखबार में मुलाजिम था। एक रोज मेरे घर पर बनारस से नागानंद मुक्तिकंठ का एक पोस्टकार्ड मिला। सुदामा पांडेय धूमिल लखनऊ मेडिकल कालेज में भर्ती हैं। न्यूरो सर्जिकल वार्ड में। उन्हें ब्रेन ट्यूमर है। मैं भागा-भागा मेडिकल कालेज गया। धूमिल बीमार होने के बावजूद पूरी गर्मजोशी से मिले। संसद से सडक तक पढ चुका था।
अगर आप हिंदी भाषी मीडियाकर्मी हैं तो बाबू राव पराड़कर के बारे में इस लेख को जरूर पढ़ें
विनय श्रीकर
ढाई-तीन महीने पहले हिन्दी के महान पत्रकार बाबूराव पराड़कर की जयंती थी। लेकिन हिन्दी के किसी पत्रकार को उनकी याद नहीं आयी। हिन्दी के किसी अखबार में पराड़कर जी के बारे में मुझे कोई लेख या टिप्पणी देखने को नहीं मिली। खैर, उनका जन्म 16 नवम्बर 1883 को हुआ था। वह वाराणसी के एक जाने-माने शिक्षित परिवार से थे। उनके पिता पंडित विष्णु शास्त्री पराडकर अपने जमाने के धुरंधर विद्वान थे।