कांग्रेस राज में मीडिया वालों के लिए एडवाइजरी आती थी, भाजपा शासनकाल में सीधे आदेश आते हैं : पुण्य प्रसून बाजपेयी

Sanjaya Kumar Singh : यादों में आलोक – “सत्यातीत पत्रकारिता : भारतीय संदर्भ”… दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में कल (शनिवार को) आयोजित एक सेमिनार में देश में मीडिया की दशा-दिशा पर चर्चा हुई। विषय था, “सत्यातीत पत्रकारिता भारतीय संदर्भ”। संचालन रमाशंकर सिंह ने किया और बताया कि अंग्रेजी के पोस्ट ट्रुथ जनर्लिज्म के लिए कुछ लोगों ने “सत्योत्तर पत्रकारिता” का सुझाव दिया था पर सत्योत्तर और सत्यातीत पत्रकारिता में अंतर है और आखिरकार सत्यातीत का चुनाव किया गया।

मोहम्मद अकरम को आलोक तोमर स्मृति स्वर्ण पदक

लखनऊ की डॉ. शकुंतला मिश्रा नेशनल रिहैबिलिटेशन यूनिवर्सिटी ने वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर की याद में स्थापित स्वर्ण पदक इस बार मोहम्मद अकरम को प्रदान किया। अकरम ने एम. ए. हिंदी में प्रथम स्थान पाया है। उन्हें यह पुरस्कार उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, यूपी सरकार में कैबिनेट …

आलोक तोमर स्मृति विमर्श : 19 मार्च चार बजे कांस्टीट्यूशन क्लब पहुंचिए

Supriya Roy : आलोक तोमर को गये हुये 6 बरस हो रहे हैं। प्रति वर्ष सब मित्रगणों की ओर से आलोक की स्मृति में एक विषय पर विमर्श आयोजित होता है। इस बार यह कार्यक्रम रविवार 19 march अपरान्ह ठीक चार बजे स्पीकर हॉल, कॉंस्टीट्यूशन क्लब एनेक्सि, रफ़ी मार्ग पर हो रहा है।

‘यादों में आलोक’ परिसंवाद : मीडिया का अपना निजी स्वार्थ न हो तभी वो सही भूमिका निभा सकता है

मीडिया और राजनीति को अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा

नईदिल्ली। डेटलाइन इंडिया द्वारा अपने संस्थापक संपादक प्रखर पत्रकार स्व. आलोक तोमर की स्मृति में नईदिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में रविवार को राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। ‘यादों में आलोक’ परिसंवाद में ‘लोकतंत्र बनाम भीड़तंत्र: मीडिया की भूमिका’ विषय पर राजनीतिक, विचारक, लेखक एवं मीडिया की हस्तियों ने विचार व्यक्त करते हुए लोकतंत्र के बदलते स्वरूप पर चिंता जताई। वक्ताओं ने कहा कि सभी को अपने-अपने दायरे में रहकर अपनी जिम्मेदारियोंं का निर्वाह करना होगा। उन्होंने कहा कि मीडिया और राजनीति दोनों को अपनी जड़ों की ओर लौटने और अपने विगत का पुनर्पाठ करने की जरूरत है। परिसंवाद का संचालन वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री ने किया। आभार व्यक्त डेटलाइन इंडिया के प्रधान संपादक डा़ॅ राकेश पाठक ने किया।

स्व. आलोक तोमर की याद में 20 मार्च को दिल्ली में कार्यक्रम, आप भी आमंत्रित हैं

हिंदी पत्रकारिता का एक जाना-माना चेहरा पत्रकार आलोक तोमर भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वो आज भी हमारी यादों में जिंदा हैं। उन्हीं की याद में एक स्मृति सभा का आयोजन किया जाएगा। ‘यादों में आलोक’ नाम से इस कार्यक्रम का आयोजन ‘डेटलाइन इंडिया’ की तरफ से होगा। यह कार्यक्रम 20 मार्च, …

मैनेज करने और मैनेज होने वाली पत्रकारिता का यह दौर और आलोक तोमर जी की याद

Ashish Maheshwari : फेसबुक है कि याद दिला देता है… आज जब पत्रकारिता मैनेज करने और मैनेज होने भर का माध्यम बनकर रह गई है ऐसे दौर में आलोक तोमर जी का न होना बेहद सालता है… दिल्ली में करियर के शुरूआती दिनों में फेसबुक के माध्यम से जिस शख्स से परिचय हुआ उनमें आलोक तोमर एक बड़ा नाम हैं ….मेरे पिता के मित्र और वरिष्ठ पत्रकार Hari Joshi ने कभी मुझसे कहा था कि दिल्ली में कोई दिक्कत हो तो आलोक तोमर जी से मिल लेना ….फोन पर बात तो बहुत हुई. मोबाइल पर तबले वाली उनकी कॉलर ट्युन और बेबाक अंदाज से रूबरू हुआ पर दुख इस बात का कि मुलाकात न हो सकी….

चौथी पुण्यतिथि : आलोक तोमर की स्टाइल में आलोक तोमर को श्रद्धांजलि दी निधीश त्यागी ने

बड़े भाई आलोक तोमर को गुजरे चार बरस हो गए. कल बीस मार्च को उनकी चौथी पुण्यतिथि पर सुप्रिया भाभी ने कांस्टीट्यूशन क्लब में भविष्य के मीडिया की चुनौतियां विषय पर विमर्श रखा था. पूरा हाल खचाखच भर गया. अलग से कुर्सियां मंगानी पड़ी. सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में अगर सबसे अलग तरीके से और सबसे सटीक किसी ने आलोक तोमर को श्रद्धांजलि दी तो वो हैं बीबीसी के संपादक निधीश त्यागी. उन्होंने अपनी एक कविता सुनाकर आलोक तोमर को आलोक तोमर की स्टाइल में याद किया. ढंग से लिखना ही आलोक तोमर को सच्ची श्रद्धांजलि है, यह कहते हुए निधीश त्यागी ने ‘ढंग से न लिखने वालों’ पर लंबी कविता सुनाई जिसके जरिए वर्तमान पत्रकारिता व भविष्य की चुनौतियों को रेखांकित किया. कविता खत्म होते ही पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. बाद में अल्पाहार के दौरान कई लोग निधीश त्यागी से उनकी इस कविता की फोटोकापी मांगते दिखे. कविता (हालांकि खुद निधीश त्यागी इसे कविता नहीं मानते) यूं है, जो Nidheesh Tyagi ने अपने वॉल पर पब्लिश किया हुआ है…

सालों, इतनी जल्‍दी भूल गए… अभी बताता हूं…

Abhishek Srivastava : कुछ लोग जीते-जी पीछा नहीं छोड़ते, लेकिन ऐसे लोग कम हैं जो जाने के बाद भी जबरन अपनी याद दिलाते रहते हैं। मुझे वाकई नहीं याद था कि चार साल पहले 20 मार्च को ही आलोकजी की मौत हुई थी। किसी ने दिन भर याद भी नहीं दिलाया, लेकिन रात ढलते-ढलते आलोकजी ने सोचा, ”सालों, इतनी जल्‍दी भूल गए… अभी बताता हूं।”