आकाशवाणी के राष्ट्रीय चैनल समेत पांच रीजनल चैनलों व प्रशिक्षण एकेडमीज पर गिरी गाज

ऑल इंडिया रेडियो के राष्ट्रीय चैनल और पांच स्थानीय चैनलों पर प्रसार भारती ने गाज गिरा दी है. पांच शहरों अहमदाबाद, हैदराबाद, लखनऊ, शिलांग और तिरुवनंतपुरम में स्थित रीजनल ट्रेनिंग एकेडमी पर भी गाज गिरी है.

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‘मन की बात करने वाले, हमारे मन की कब सुनोगे…’ जैसे नारे लगाते हुए देश भर के सैकड़ों कैजुअल एनाउंसर्स दो दिन तक दिल्ली में आंदोलनरत रहे. उन्हें रोकने के लिए तगड़ी किलेबंदी की गई थी. उन्हें गिरफ्तार कर संसद मार्ग थाने ले जाया गया. इस दौरान वे नारेबाजी करते रहे.

आकाशवाणी के कैज़ुअल एनाउंसर का आकाशवाणी महानिदेशालय के बाहर प्रदर्शन

आल इंडिया रेडियो केजुअल एनांउसर एण्ड कम्पीयर यूनियन का आकाशवाणी महानिदेशालय के सामने धरना… इसके बाद अतिरिक्त महानिदेशक ने बातचीत के लिये बुलाया…

नई दिल्ली। दिनांक 12 सितंबर 2017 को आल इंडिया रेडियो केजुअल एनांउसर एण्ड कम्पीयर यूनियन के देश भर से विभिन्न आकाशवाणी केन्द्रों से आये केजुअल एवं उनके प्रतिनिधि जंतर मंतर पर इकट्ठा हुये और वहाँ से शांतिपूर्ण तरीके से मुँह पर काली पट्टी लगाकर पैदल मार्च करते हुये प्रसार भारती के गेट के सामने पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने महानिदेशक से मिलने के लिये समय मांगा किन्तु महानिदेशक के बाहर होने के कारण अतिरिक्त महानिदेशक ने मिलने का समय दिया। इसमे उन्होंने सिर्फ तीन पदाधिकारियों को ही अन्दर आने की अनुमति देने की बात कही।

सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी से मिले आकाशवाणी के कैज़ुअल एनाउंसर

आल इंडिया रेडियो कैज़ुअल अनाउन्सर एंड कंपेयर यूनियन रजिस्टर्ड और आल इंडिया रेडियो ब्रॉडकास्टिंग प्रॉफेशनल एसोसिएशन रजिस्टर्ड का एक प्रतिनिधि मंडल माननीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी से यूनियन महासचिव डॉ शबनम खानम और शरद तिवारी के नेतृत्व और शिमला के सांसद वीरेंद्र कश्यप के संरक्षण में मिला। प्रतिनिधि मंडल में उपरोक्त के अलावा अर्चना गोयल, संजीव अग्निहोत्री और मनोज सिंह शामिल थे। मंत्री ने कैजुअल कर्मियों की सभी समस्याओं का सिरे से निवारण करने का आश्वासन दिया है। इस कार्य हेतु वे देश के हर केंद्र के प्रतिनिधियों की दिल्ली में मीटिंग लेंगी, जिसमें देश भर के केजुअल कर्मियों की समस्याओं का निवारण किया जाएगा।

हिसार के आकस्मिक प्रस्तोताओं और उद्घोषकों की जिद से झुका आकाशवाणी प्रशासन, वार्ता के बाद आंदोलन खत्म

हिसार : आकाशवाणी आकस्मिक प्रस्तोता संघ के बैनर तले लिखित व स्वर परीक्षा को लेकर जारी आंदेालन बुधवार को दोनों पक्षों की सहमति के बाद वापस ले लिया गया। परीक्षा शुरू होने के बाद जब आंदोलनरत कर्मचारियों का जुलूस धरना स्थल से सीआर लॉ कॉलेज के परीक्षा केंद्र पर पहुंचा तो प्रशासन के हाथ पैर फूल गए। वहीं पुलिस प्रशासन ने आंदेालनकारियों को धारा 144 का हवाला देते हुए रोक दिया। जिससे आंदोलनकारी में और गुस्सा देखने को मिला।

आज विश्व रेडियो दिवस है… आइए अशोक अनुराग से सुनते हैं रेडियो की कहानी

आज विश्व रेडियो दिवस है। रेडियो यानी आवाज़ की वो दुनिया जिसमे बातें हैं कहानियां हैं गीत संगीत है नाटक है रूपक है बाल कार्यक्रम है महिलाओं का कार्यक्रम है बुज़ुर्गों का कार्यक्रम है युवाओं का कार्यक्रम है सैनिक भाइयों का कार्यक्रम है किसानों का भी कार्यक्रम है समाचार है और है वो सब कुछ जो हमारी इस दुनिया में है। रेडियो के आविष्कारक मारकोनी ने जब पहली बार इटली में 1895 रेडियो सिग्नल भेजा और उसे सुना तो भविष्य का इतिहास वहीं अंकित हो गया था। एक कमरे में किया गया ये प्रयोग जब 1899 में इंग्लिश चैनल को रेडियो सिग्नल पार करता दूसरी छोर पर चला गया तो हंगामा मच गया। लेकिन रेडियो सिग्नल मात्र भेजना एक उपलब्धि तो थी लेकिन सवाल ये था कि क्या आवाज़े भी इस माध्यम से जा सकेंगीं।

आकाशवाणी के भाषाई समाचार यूनिटों को शिफ्ट करने का भारी विरोध

ऑल इंडिया रेडियो यानि आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग के तहत काम कर रहे भाषाई समाचर यूनिटों को संबधित राज्यों में भेजे जाने के प्रस्ताव का विरोध तेज हो गया है। दरअसल आकाशवाणी समाचार सेवा प्रभाग, नई दिल्ली के अंतर्गत हिन्दी और अंग्रेजी सहित 14 भारतीय भाषाओं में समाचारों का प्रसारण किया जाता है। इनमें असमिया, अरुणाचली, बंगाली, डोगरी, कश्मीरी, मराठी, पंजाबी, नेपाली, तमिल, मलयालम, उड़िया, गुजराती, उर्दू और संस्कृत भाषा शामिल है।

आकाशवाणी महानिदेशालय की खामोशी से आंदोलनकारी कैज़ुअल एनाउंसर नाराज, आर-पार की लड़ाई होगी

आकाशवाणी के कैज़ुअल एनाउंसर का एक दल, सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास अठावले से मिलने गया और न्याय पाने के लिए विनम्र निवेदन किया. सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने न्याय पूर्ण इन्साफ दिलवाने का वादा किया है. उधर, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और फ़िलहाल कांगड़ा से बीजेपी सांसद शांता कुमार ने भी आकाशवाणी के कैज़ुअल एनाउंसर से अपने कार्यालय में मिले और हर संभव सार्थक मदद करने का भरोसा दिलाया.

न्याय पाने से वंचित आकाशवाणी के सैकड़ों कैज़ुअल एनाउंसर फिर जंतर-मंतर पहुंचे

जंतर-मंतर एक अगस्त 2016 को एक बार फिर गवाह बना उस आंदोलन का, जिसमें शामिल थे आकाशवाणी में काम करने वाले कैज़ुअल उद्घोषक / कमपियर और आर. जे. यानि रेडियो जॉकी, पिछले साल भी तीन और चार अगस्त को जंतर मंतर से आवाज़ दी गई थी आकाशवाणी महानिदेशालय और प्रसार भारती के उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को. हैरत की बात है आकाशवाणी महानिदेशालय और प्रसार भारती न सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मान रही है और ना उसकी नज़रों में संसद के संसदीय समिति द्वारा पारित आदेश का कोई सम्मान है। इतना ढीठ, जिद्दी, अभिमानी, अहंकारी कोई कैसे हो सकता है और वो भी एक ऐसा संस्थान जो देश की आवाज़ कहलाता है।

आकाशवाणी के कैज़ुअल एनाउंसर जंतर-मंतर पर एक अगस्त से देंगे धरना, लोकसभा में भी मुद्दा उठा

जब उम्मीदें हांफने लगे, सपने चीख चीख कर आपको सोने न दें तभी होती है क्रांति, आकाशवाणी में पूरी ज़िन्दगी दे चुके कैज़ुअल एनाउंसर को जिस तरह से अंडरटेकिंग और रिव्यु के जाल में फंसा कर निकाला गया और निकाला जा रहा है, उसके विरोध में पिछले साल 3 और 4 अगस्त 2015 को दो दिवसीय धरना प्रदर्शन जंतर मंतर पर आयोजित किया गया था, उम्मीद थी कुछ अच्छा होगा या आकाशवाणी महानिदेशालय या प्रसार भारती कोई रास्ता इन कैज़ुअल एनाउंसर के लिए निकालेगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि आकाशवाणी का व्यवहार कैज़ुअल एनाउंसर के प्रति और नफ़रत भरा तथा बदले की दुर्भावना से भर गया।

क्या प्रसार भारती और आकाशवाणी महानिदेशालय माननीय सर्वोच्च न्यायालय व संसद से भी बड़ी हो गई है!

आकाशवाणी के दोहरे मापदंड एवं हठधर्मिता के चलते लंबे समय से काम रहे आकस्मिक उद्घोषकों का नियमितिकरण नहीं किया जा रहा है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट भी संविधान पीठ भी दस वर्षों या अधिक समय से कार्यरत संविदा कर्मियों की सेवाओं का नियमितिकरण एक मुश्त उपाय के तहत करने के निर्देश दे चुकी है। आकाशवाणी में आकस्मिक कलाकार/ कर्मचारी सन 1980 से अर्थात प्रसार भारती के लागू होने के वर्षों पहले से स्वीकृत एवं रिक्त पड़े पदों के स्थान पर आकस्मिक उद्घोषक/ कम्पीयर के रूप में काम कर रहे हैं।

जहां सच्चाई दम तोड़ देती है उसे आकाशवाणी कहते हैं…

हम सभी जानते हैं कि हर संस्थान का अपना मैन्यूअल होता है जिसे हम नियमावली भी कहते हैं, जिसमें उस संस्थान को चलाने के कुछ नियम विधि संगत तरीके से रखे जाते हैं और उनका पालन करके ही कोई भी संस्थान अपने को चला पाती है, गैर सरकारी संस्थानों में मैन्यूअल की अनदेखी जग जाहिर है, नियम सिर्फ किताबों में रह जाते हैं उनका पालन शायद ही होता है।

गूंगी आकाशवाणी से प्रशिक्षुओं में निराशा

आकाशवाणी की संवादहीनता के रवैये से प्रशिक्षु पत्रकारों में काफ़ी निराशा है। नाराज प्रशिक्षुओं ने कहा है कि इसकी शिकायत सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर से कर दी गयी है और अब तक की पूरी सिलसिलेवार जानकारी उन तक पहुंचा दी गयी है। प्रशिक्षुओं का आरोप है कि प्रसार भारती के आदेश के बावजूद भी आकाशवाणी उनको इंटर्नशिप के लिए अपने यहां नियुक्ति नहीं दे रहा है जबकि उनके ही साथ के अन्य प्रशिक्षु जिन्हें प्रसार भारती ने दूरदर्शन के लिये चयनित किया था उनकी नियुक्ति हो गयी है और उनको पारिश्रमिक भी मिलना शुरू हो गया है जबकि आकाशवाणी अपनी निरंकुशता के कारण अब तक नियुक्ति नहीं दे सका है। बल्कि उल्टे संवादहीनता की स्थिति को कायम कर मामले को छिपाने की साज़िश रच रहा है। उन्होने कहा कि इसकी शिकायत सम्बन्धित मंत्रालय से कर दी गयी है।

नियमितीकरण के लिए आकाशवाणी के उद्घोषकों का जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन

दिल्ली : अखिल भारतीय आकस्मिक उद्घोषक/ कम्पीयर कर्मचारी एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी मनोज कुमार पाठक ने बताया कि नियमितीकरण की मांगों के समर्थन में सभी आकस्मिक उद्घोषकों (कम्पीयर) ने 3 एवं 4 अगस्त को जंतर-मंतर पर शांति पूर्ण तरीके से दो दिवसीय धरना-प्रदर्शन किया गया। 

आह आकाशवाणी, वाह आकाशवाणी…

लिखने और फिर छपने के चस्का लगने के दिन थे.. उत्तर प्रदेश के आखिरी छोर पर स्थित बलिया में हिंदी साहित्य की पढ़ाई करते वक्त कलम ना सिर्फ चल पड़ी थी..बल्कि उसे राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में जगह भी मिलने लगी थी..तब के गांव आज की तुलना में कहीं ज्यादा गांव थे..ललित निबंधकार विवेकी राय के शब्दों को उधार लूं तो देसज गांव…जिसमें उसका भूगोल ही नहीं, अपनी सोच और संस्कृति भी समाहित होती थी…तब के गांवों में रोजाना देसी चूल्हे से उठता धुआं भी उन दिनों के गांवों को प्रदूषित नहीं कर पाया था.

बे-मन की बात : आकाशवाणी के कैजुअल एनाउंसरों पर लटक रही छंटनी की तलवार

न्यायालय और संसदीय कमेटी के आदेश को भी दरकिनार करते हुए आकाशवाणी में कार्यरत कैज़ुअल एनाउंसरों को असंवैधानिक तरीके से बाहर निकालने की साजिश चल रही है। ख़ासकर वे कैज़ुअल एनाउंसर, जो पिछले पंद्रह वर्षों से अधिक समय से कार्यरत हैं, उन्हें एक अंडरटेकिंग के माध्यम से निकाले जाने का अंदेशा गहराता जा रहा है। 

आकाशवाणी के कैजुअल एनाउंसरों की दास्तान- जिनके जीने का हक़ भी छीना जा रहा है, हो सके तो बचा लीजिये!

ये कैसी अंडरटेकिंग….????

आकाशवाणी, जिसके प्रतीक चिन्ह पर अंकित है – “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय”. एक ज़माना वो भी था जब रेडियो कहने का मतलब आकाशवाणी हुआ करता था. समाचार हो या मनोरंजन के कार्यक्रम, रेडियो ही एक मात्र साधन था क्यूंकि तब आज की तरह सेटेलाइट टीवी का ज़माना नहीं था. या कह लें आज की तरह एफएम का मल्टी चैनल युग भी नहीं था। रेडियो की बात चलते ही कई आवाज़ें कानों में गूंजने लगती है, देवकीनन्दन पाण्डेय, विनोद कश्यप, इंदु वाही, अशोक वाजपई, अमीन सयानी, बृजभूषण, सरिता सेठी, मधुर भूषण, कृष्ण कुमार भार्गव, मनोज कुमार मिश्र, रवि खन्ना, उमेश अग्निहोत्री, कव्वन मिर्ज़ा, प्रदीप शुक्ला… और भी ढेरों ऐसे नाम जो आज भी हम सब के कानो में गूंजते हैं।

दूरदर्शन और आकाशवाणी पर भी आएगी ब्रेकिंग न्‍यूज

दूरदर्शन और आकाशवाणी का कलेवर अब बदलने जा रहा है। निजी समाचार चैनलों की तरह अब इसमें भी ब्रेकिंग न्‍यूज दिखाई और सुनाई जाएगी। कोशिश रहेगी कि ब्रेकिंग न्यूज निजी समाचार चैनलों से पहले चल जाए। इसके लिए सरकारी प्रसार भारती सरकारी मंत्रालयों पर निर्भर होगी। प्रसार भारती के प्रमुख ने सचिवों से कहा है कि सरकारी मंत्रालयों की खबरें सार्वजनिक होने से नहले दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो को एडवांस में दी जाएं।

एआईआर ने 37 ज्ञानवाणी एफएम स्टेशनों को बंद किया

ऑल इंडिया रेडिया ने अपने 37 ज्ञानवाणी शैक्षणिक एफएम स्टेशनों को बंद कर दिया है। इन स्टेशनों का उपयोग इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विवि (इग्नू) के शैक्षणिक कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए किया जाता था। स्टेशनों को बंद करने का कराण इग्नू द्वारा बकाया रकम का न चुकाया जाना बताया जा रहा है।

मंत्रालयों और पीएसयू के मीडिया प्लान में दूरदर्शन और एआईआर को वरीयता दें

केंद्र ने अपने सभी मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) को डीडी व एआइआर को तबज्जो देने की हिदायत दी है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव बिमल जुल्का ने इस संबंध में सभी मंत्रालयों को एक पत्र भेजकर यह सुनिश्चित करने को कहा है कि मंत्रालयों व पीएसयू के मीडिया प्लान में दूरदर्शन और एआइआर को वरीयता दें। जुल्का ने कहा कि केंद्रीय मंत्रालय व पीएसयू, जिनका प्राथमिक टारगेट ऑडियंस (श्रोता/ दर्शक) ग्रामीण आबादी है, अपने मीडिया प्लान में डीडी और एआइआर को वरीयता नहीं दे रहे हैं। वे मीडिया पर खर्च करते समय निजी सेटेलाइट चैनल या न्यूज चैनलों को अधिक वरीयता देते हैं जिनका झुकाव उच्च सामाजिक-आर्थिक वर्ग के ऑडियंस के प्रति होता है जबकि डीडी और एआइआर का फोकस मुख्यत: समाज के कमजोर तबकों और महिला दर्शकों पर होता है।