माँ के पास खाट थी, मेरे पास लोकतन्त्र है

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर (राजस्थान)

मेरी माँ थी। इसमें तो कोई खास बात नहीं, आप यही सोचेंगे। क्योंकि माँ तो जन्म लेने वाले हर जीव की होती है। रंग, रूप, सूरत भिन्न भिन्न होने के बावजूद सब माएं होती एक जैसी हैं, ममता, करुणा, दया, वात्सल्य, त्याग और उदारमना। कम शब्दों मेँ माँ जैसा कोई है ही नहीं। खैर, मेरी माँ थी। जैसे सबकी माँ होती है। माँ के पास एक खाट थी। लकड़ी के चार पाये वाली। एकदम मजबूत। कसी हुई। चारों पाये पूरी तरह चाक चौबन्द। पाये चमकते थे। खाट का वजन तो था ही, उनके ऊपर इसके साथ-साथ उस पर बैठने वालों का वजन भी उठाते पाये। बड़े होनहार थे। बड़े प्यारे और स्वाभिमानी भी। मजाल कोई उसमें कमी निकाल दे।

कदाचारी पेड न्यूज ने भारतीय लोकतंत्र को सड़ा दिया, भारी भ्रष्टाचार

‘पेड न्यूज’ भारतीय मीडिया में एक ऐसी घटना है, जिसमें भुगतान के बदले में ‘अनुकूल’ लेख राजनीतिज्ञों , व्यवसायियों, मशहूर हस्तियों/दलालों/ललितमोदियों द्वारा प्रायोजित कराये जाते हैं| पी.साईनाथ के अनुसार “पेड न्यूज ” की घटना व्यक्तिगत पत्रकारों और मीडिया कंपनियों के भ्रष्टाचार से परे चली गयी है। अब यह अत्यन्त व्यापक व सुनियोजित प्रक्रिया है, जो भारत में लोकतंत्र को कमजोर करने पर उतारू है | चुनावो में ‘पेड न्यूज़’ एक व्यापक पैमाने पर होने वाला कदाचार है|

लोकतांत्रिक तरीके से चुना हुआ व्यक्ति भी तानाशाह हो सकता हैः नामवर सिंह

नई दिल्ली : आलोचना (त्रैमासिक) पत्रिका के अंक 53-54 के प्रकाशन के उपलक्ष्य में ‘भारतीय जनतंत्र का जायजा’ विषय पर साहित्य अकादमी-सभागार में आयोजित परिचर्चा में युवाओं की भागीदारी जबरदस्त रही। दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित अन्य अकादमिक संस्थानों के छात्रों ने जमकर हिस्सा लिया। उपस्थिति  का आलम यह था कि सभागार में पैर रखने की भी जगह नहीं थी। जिसे जहां जगह मिली, वह वहीं पर बैठ गया। इस बीच युवाओं ने जनतंत्र से जुड़े सवालों की झड़ी लगा दी। एक युवा ने सवाल खड़ा किया कि आखिर क्यों ‘आलोचना’ पहले जैसी नहीं होती! जिसकी आलोचना होती है वह और मजबूत क्यों हो जाता है!

इस लोकतंत्र में छंछूदर हमारे सिर पर नाचे, पूँजीवादी जूतों से आम आदमी ख़ूनमख़ून

आज एक सप्ताह पुराने अखबार देखे। पहला समाचार- ‘हम फिर 2017 चुनाव जीतकर वापस आयेंगे : अखिलेश यादव’। दूसरा समाचार – ‘मई 10, 2015 – लखनऊ के कृष्णानगर में 18 माह की दूधमुही बच्ची के साथ बलात्कार, खून बहते हुए गंभीर हालत में लोकबन्धु हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, बच्ची के मां कचरा बीनकर सड़क के किनारे ही जीवन बिताती है’….

लोक को खारिज कर रहा टीवी-तंत्र अर्थात् भारतीय मीडिया की दोगलई

मीडिया स्वयं को जनता का वक़ील नियुक्त करके शुरुआत करता है ! सारे सवाल जो वह तंत्र के सामने दरपेश करता है, वह “लोक” के लिये करने का बैनर माथे पर लगाकर करता है। तभी लोकतंत्र बनता है। देश का सबसे तेज़ चिल्लाने वाला टाइम्स नाउ का एंकर अरनब गोस्वामी कहता है “नेशन वान्ट्स टु नो” ! “नेशन”देश के 125 करोड़ लोग हैं। 

मीडिया की स्वतंत्रता से और बेहतर होगा लोकतंत्र

गया: एपीआइ भवन में रोटरी, गया सिटी की ओर से प्रेस दिवस समारोह मनाया गया. इस मौके पर रोटरी व मीडिया से जुड़े लोगों ने राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की. कार्यक्रम की अध्यक्षता रोटरी सिटी के अध्यक्ष श्याम प्रकाश सरावगी ने की. डॉ रामसेवक प्रसाद ने स्वागत भाषण दिया. रोटरी की डॉ माहजबीन निशात अंजुम ने प्रेस दिवस के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि इसी महीने अंतरराष्ट्रीय प्रेस की स्वतंत्रता का दिवस भी है.