गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर (राजस्थान)
मेरी माँ थी। इसमें तो कोई खास बात नहीं, आप यही सोचेंगे। क्योंकि माँ तो जन्म लेने वाले हर जीव की होती है। रंग, रूप, सूरत भिन्न भिन्न होने के बावजूद सब माएं होती एक जैसी हैं, ममता, करुणा, दया, वात्सल्य, त्याग और उदारमना। कम शब्दों मेँ माँ जैसा कोई है ही नहीं। खैर, मेरी माँ थी। जैसे सबकी माँ होती है। माँ के पास एक खाट थी। लकड़ी के चार पाये वाली। एकदम मजबूत। कसी हुई। चारों पाये पूरी तरह चाक चौबन्द। पाये चमकते थे। खाट का वजन तो था ही, उनके ऊपर इसके साथ-साथ उस पर बैठने वालों का वजन भी उठाते पाये। बड़े होनहार थे। बड़े प्यारे और स्वाभिमानी भी। मजाल कोई उसमें कमी निकाल दे।