क्या आप उस बच्चे से अंग्रेजी माध्यम से 19वीं रैंक के साथ पीसीएस बनने की उम्मीद कर सकते हैं, जिसकी शिक्षा सरकारी प्राइमरी स्कूल से शुरू हुर्इ हो, जिसे एकेडमिक करियर में अंग्रेजी विषय में 18 अंक ग्रेस मार्क देकर पास किया गया हो, जिसे कक्षा 10 में मात्र 59.8%, 12 में मात्र 63.3% और …
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दैनिक जागरण प्रबंधन के खिलाफ एक्शन लेने / मुकदमा लिखने में यूपी के आईएएस-आईपीएस अफसरों के हाथ-पैर कांपते हैं!
कार्रवाई तो दूर, एसएसपी ऑफिस में गायब हो जाता है डीएम का पत्र!
नोएडा : डीएम ऑफिस से एसएसपी कैंप कार्यालय की दूरी कुल 10 कदम होगी। लेकिन इस दूरी तक डीएम की चिट्ठी पहुंचना तो दूर, दो बार गायब हो चुकी है। यह तो एक उदाहरण मात्र है। इसी प्रकार गौतमबुद्धनगर के न जाने कितने फरियादी आए दिन पुलिस से निराश हो रहे होंगे। इस उदाहरण से यह भी पता चलता है कि किस प्रकार पुलिस अधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फेल करने में लगे हैं।
क्या संजय गुप्ता की टांग टूट गई है?
Shrikant Singh : दैनिक जागरण के कर्मचारियों की बददुआ का असर देखिए.. सुना है कि संजय गुप्ता का पैर टूट गया है। समझ में नहीं आ रहा है कि इस पर दुखी हुआ जाए या खुश। हां चिंता जरूर हो रही है कि वह अपने पैरों पर चल कर जेल कैसे जा पाएंगे। शायद भगवान उनका साथ अब छोड़ने लगे हैं। दरअसल, जो मालिक अपने आश्रित कर्मचारियों का हक मारता है, उसकी यही दशा होती है। शनि महाराज ऐसे लोगों से तत्काल नाराज हो जाते हैं और पहले अपना प्रभाव पैर पर ही दिखाते हैं। शनि का प्रतिकूल प्रभाव दूर करने के लिए पैदल चलना जरूरी होता है, लेकिन शनि महाराज कोई बुड़बक थोड़े ही हैं। शायद इसीलिए वह पहला प्रहार पैरों पर ही करते हैं। सही गाना है-पैर ही जब साथ न दें तो मुसाफिर क्या करे।
नरेंद्र मोदी की शह पाकर दैनिक जागरण के मालिक और सीईओ संजय गुप्ता अपराध की राह पर निकल पड़े हैं!
Fourth Pillar : अपराधियों, घोटालेबाजों और तस्करों को संरक्षण दे रहे हैं संजय गुप्ता… वाहन पर प्रेस लिखा देख कर पुलिस वाले सम्मान में वाहन को नहीं रोकते और उसकी जांच करना पत्रकारिता का अपमान समझते हैं। उन्हें लगता है कि इस वाहन में कोई गणेश शंकर विद्यार्थी बैठा होगा। पहले कमोवेश यह बात सही भी रही होगी, लेकिन सावधान। दैनिक जागरण के प्रेस लिखे वाहन में कोई अपराधी, घोटालेबाज अथवा तस्कर भी हो सकता है।
संजय गुप्ता यानि स्वतंत्रता का दुश्मन
Shrikant Singh : देश के इस दुश्मन को अच्छी तरह पहचान लें… दोस्तो, देश के दुश्मनों से लड़ने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण उन्हें पहचानना है। सीमापार के दुश्मनों से कहीं अधिक खतरनाक दुश्मन देश के अंदर हैं। आप उन्हें पहचान गए तो समझिए हमारी जीत पक्की। हम आपका ध्यान देश के एक ऐसे दुश्मन की ओर दिलाना चाहते हैं, जो पुलिस, प्रशासन, देश की न्यायपालिका और यहां तक कि देश की व्यवस्था तक को प्रभावित कर अपनी मुनाफाखोरी के जरिये इस देश को लूट रहा है। आप पहचान गए होंगे। हम दैनिक जागरण प्रबंधन की बात कर रहे हैं। आज 26 जनवरी है। गणतंत्र दिवस। इस दिन एक वाकया याद आ रहा है।
जागरण प्रबंधन चाहता है किसी तरह पुराने कर्मचारियों से निजात मिल जाए!
Shrikant Singh : जंग ‘जागरण’ ने शुरू की, समापन हम करेंगे… मित्रों, आज कल मैं फेसबुक पर दैनिक जागरण प्रबंधन की हरकतों के बारे में कुछ नहीं लिख रहा हूं। इस पर कुछ मित्रों ने शिकायत भी की है। क्या करूं, आप तो जानते ही हैं-सबसे बड़ा रुपैया। ऐसा न होता तो जागरण प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को धता क्यों बताता। तमाम कर्मचारियों को बेवजह क्यों परेशान करता। कभी कचहरी का भी मुंह न देखने वाले लोग सुप्रीम कोर्ट में दस्तक क्यों देते। बेजुबान लोग क्रांतिकारी क्यों बन जाते।
दैनिक जागरण नोएडा के प्रबंधकों ने गायब कराया डेढ़ लाख रुपये का सामान!
मजीठिया मंच : दैनिक जागरण में चमचागीरी का आसान सा तरीका है मजीठिया वेतनमान का विरोध करो। इसी तरीके को अपना कर कई चमचे प्रबंधन के खास बन गए हैं और दैनिक जागरण को दोनों हाथों से लूट रहे हैं। प्रबंधन उन्हें ऐसा करने के लिए मौन सहमति दे रहा है। ताजा मामले की बात करें, तो हाल ही में प्रसार व्यवस्थापक कप्तान ने अखबार वेंडरों को बांटने के लिए डेढ़ लाख रुपये का सामान एक वाहन में लोड करके सोनीपत भेज दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने मीडियाकर्मियों को दिया गलती सुधारने का एक विशेष मौका
दबाव, जबर्दस्ती, अज्ञानता, भय, मजबूरी या कंफर्ट जोन में रहने की आदत। जो भी कहें, दैनिक जागरण के कर्मचारियों ने एक गलती तो कर ही दी है कि 20-जे के तहत कंपनी को सुप्रीम कोर्ट में फायदा उठाने का मौका दे दिया है। अब जब लोग ताल ठोंक कर सुप्रीम कोर्ट पहुंच ही गए हैं तो अदालत ने उन्हें अपनी गलती सुधारने का एक विशेष मौका दे दिया है।
पीड़ित पत्रकारों का साथ दूंगा, मीडिया घरानों की नाराजगी की परवाह नहीं : केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल को मजीठिया वेतनमान दिलाने का आश्वासन देकर एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह अलग किस्म के राजनेता हैं। वह शोषित, पीड़ित और प्रताड़ित वर्ग के हितों की रक्षा करने के लिए बने हैं। इसके लिए उन्हें बड़े-बड़े मीडिया घरानों की नाराजगी तक की कोई परवाह नहीं है। शुक्रवार को दिल्ली सचिवालय में मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा, ”हम जनता के वोट से जीत कर आए हैं। इसलिए हम मालिकान के साथ नहीं, पीडि़त पत्रकारों के साथ खड़े हैं।”
पत्रकार ने जीएम / एडिटर को पत्र लिखा- आपकी एक छोटी-सी हरकत औद्योगिक अशांति पैदा कर सकती है, जो संस्थान पर बहुत भारी पड़ेगी
श्री अभिमन्यु शर्मा जी,
महाप्रबंधक / संपादक
दैनिक जागरण, जम्मू।
महोदय,
मुझे आज फोन पर सूचना मिली है कि मेरे 50 हजार रुपये के लोन के संदर्भ में आप गारंटी लेने वाले मेरे सहयोगियों को प्रताडि़त कर रहे हैं। आपने उनसे यह झूठ भी बोला है कि लोन के संदर्भ में मुझे नोटिस जारी हो चुका है, जबकि उस संदर्भ में मुझे कोई नोटिस नहीं मिला है। इस संदर्भ में आपका ध्यान निम्न बातो पर दिलाना चाहता हूं।
(पत्र लेखक पत्रकार श्रीकांत सिंह की फाइल फोटो)
देखते हैं, ‘मजीठिया’ से बचने को किस हद तक गिरता है जागरण
चलो करते हैं न्याय की बात। दैनिक जागरण का कार्मिक प्रबंधक रमेश कुमार कुमावत खुद प्रताड़ना का शिकार हो रहा है। यह मैं नहीं कह रहा हूं, ये साक्षात माननीय कुमावत जी के ही वचन हैं। मैं नोएडा के सेक्टर-छह स्थित कार्यालय में पुलिस अधिकारियों से मिलने गया था कि वहां रमेश कुमार कुमावत जी से मुलाकात हो गई। वह मुझसे कहने लगे-भइया मुझे क्यों फंसा दिया।
प्रदीप श्रीवास्तव और विनोद शील का विरोध करने के कारण मैं निशीकांत ठाकुर का चहेता बन गया
: दैनिक जागरण के चिंटू, मिंटू और चिंदीचोर : अवधी की एक कहावत है-केका कही छोटी जनी, केका कही बड़ी जनी। घरा लै गईं दूनौ जनी। अर्थात किसे छोटी बहू कहूं और किसे बड़ी बहू कहूं। घर तो दोनों बहुओं ने बर्बाद किया है। यह बात दैनिक जागरण पर सटीक बैठती है। 1995 की बात है, जब टीवी चैनलों की धूम मची थी। अखबार इस बात से डर गए थे कि कहीं इलेक्ट्रानिक मीडिया उन्हें निगल न जाए। ऐसे समय में मैं इलेक्ट्रानिक मीडिया से काम छोड़ कर दैनिक जागरण में नौकरी के लिए आ गया था।
पत्रकार श्रीकांत सिंह ने जागरण वालों पर यूं मारी पिचकारी, देखें वीडियो
दैनिक जागरण नोएडा से जुड़े हुए वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत सिंह काफी समय से बगावती मूड में हैं. इन्होंने मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से अपना एरियर व सेलरी पाने के लिए मुहिम छेड़ रखी है. साथ ही दर्जनों कर्मचारियों को इस मुहिम से जोड़ रखा है. पिछले दिनों नाराज प्रबंधन ने श्रीकांत का तबादला जम्मू कर दिया. बाद में वे नोएडा बुलाए गए लेकिन उन्हें आफिस में नहीं घुसने दिया गया. साथ ही जागरण के गार्डों ने उनसे मारपीट व छिनैती की. इस पूरे मामले को लेकर वे लेबर आफिस गए लेकिन उनका आरोप है कि अफसर ने सेटिंग करके रिपोर्ट जागरण के पक्ष में दे दी है.
जागरण के पत्रकार ने नोएडा के उप श्रमायुक्त की श्रम सचिव और श्रमायुक्त से की लिखित शिकायत
मजीठिया मामले में अपने को पूरी तरह से घिरा पाकर दैनिक जागरण प्रबंधन इतना बौखला गया है कि अब वह हमला कराने, घूसखोरी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने पर उतर आया है। इस बात के संकेत उस जांच रिपोर्ट से मिल रहे हैं, जिसके लिए जागरण के पत्रकार श्रीकांत सिंह ने उप श्रम आयुक्त को प्रार्थना पत्र दिया था। जांच के लिए पिछले 21 फरवरी 2015 को श्रम प्रवर्तन अधिकारी राधे श्याम सिंह भेजे गए थे। यह अफसर इतना घूसखोर निकला कि उसने पूरी जांच रिपोर्ट ही फर्जी तथ्यों के आधार पर बना दी। उसने जांच रिपोर्ट में बतौर गवाह जिन लोगों के नाम शामिल किए हैं, उनमें से कोई भी घटना के मौके पर मौजूद नहीं था।
मजीठिया संघर्ष : जागरण प्रबंधन ने तबादला किया तो श्रीकांत ने मैनेजमेंट को भेजा नोटिस
दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय से जम्मू स्थानांतरित मुख्य उपसंपादक श्रीकांत सिंह ने जागरण प्रबंधन को दिया नोटिस. कार्मिक प्रबंधक रमेश कुमार कुमावत ने श्रम प्रवर्तन अधिकारी राधे श्याम सिंह को दिए थे भ्रामक, गुमराह करने वाले और अपूर्ण बयान. जागरण प्रबंधन की दुर्भावनापूर्ण नीतियों के कारण श्रीकांत सिंह को ड्यूटी करने में पहुंचाई जा रही है बाधा. प्रबंधन की हठधर्मिता के विरोध में श्रीकांत सिंह लेंगे अदालत की शरण. पढ़ें, नोटिस में क्या लिखा गया है…