गंगा की दुहाई देकर सत्ता में आए और गंगा को ही भूल गए (देखें वीडियो)

गंगा नदी में बह रहा है गंदे सीवर का पानी… माँ गंगा अपनी बदहाली के लिए बहा रही आँसू, नहीं सुन रहे उनके बेटे… याद कीजिए नरेंद्र मोदी का यह कथन… ”न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है। दरअसल, मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है। यहां आकर मैं वैसी ही अनुभूति कर रहा हूं, जैसे एक बालक अपनी मां की गोद में करता है।” आज से 3 वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ये बातें वाराणसी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने के वक्त कहा था।

गंगा को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले कर देना चाहती है सरकारः जलपुरुष राजेन्द्र सिंह

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मुंगेर। विश्वबैंक की नज़र गंगा की कमाई पर है, जबकि गंगा माई किसानों, मछुआरों के साथ गंगा तट पर बसे लोगों की जीविका का आधार है। गंगा के नाम पर वोट तो बटोरे गये, लेकिन सत्ता के गलियारें में पहुंचते ही वोट मांगने वाले गंगा को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले करने पर अमादा हैं। आज जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों पर से आम लोगों का हक छिनता जा रहा है, उस स्थिति में मीडिया एक्टिविस्ट की भूमिका अदा करनी होगी। ये उद्गार मैग्सेसे एवार्ड से सम्मानित राजेन्द्र सिंह ने सूचना भवन, मुंगेर में मुंगेर पत्रकार समूह द्वारा ‘प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को रोकने में मीडिया की भूमिका’ पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये।

नदियां जीवनदायिनी हैं, उनका संरक्षण और शुद्धिकरण ज़रूरी है

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यमुना के जल पर तैरता औद्योगिक अपशिष्ट

सब जानते हैं कि नदियों के किनारे ही अनेक मानव सभ्यताओं का जन्म और विकास हुआ है। नदी तमाम मानव संस्कृतियों की जननी है। प्रकृति की गोद में रहने वाले हमारे पुरखे नदी-जल की अहमियत समझते थे। निश्चित ही यही कारण रहा होगा कि उन्होंने नदियों की महिमा में ग्रंथों तक की रचना कर दी और अनेक ग्रंथों-पुराणों में नदियों की महिमा का बखान कर दिया। भारत के महान पूर्वजों ने नदियों को अपनी मां और देवी स्वरूपा बताया है। नदियों के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है, इस सत्य को वे भली-भांति जानते थे। इसीलिए उन्होंने कई त्योहारों और मेलों की रचना ऐसी की है कि समय-समय पर समस्त भारतवासी नदी के महत्व को समझ सकें। नदियों से खुद को जोड़ सकें। नदियों के संरक्षण के लिए चिंतन कर सकें।