क्या ग़ज़ब के लिखते हो, बात ही नहीं करते हो

प्राइम टाइम के लिए रोज़ाना कई लेखों से गुज़रना पड़ता है । इन लेखों से अब बोर होने लगा हूं। कई बार लगता है कि अख़बारों के संपादकीय पन्नों पर छपने वाले इन लेखों की संरचना( स्ट्रक्चर) का पाठ किया जाना चाहिए। ज़्यादातर लेखक एक या दो तर्क या सूचना के आधार पर ही तैयार किये जाते हैं।  पहले तीन चार पैराग्राफ को तो आप आराम से छोड़ भी सकते हैं। भूमिका में ही सारी ऊर्जा खत्म हो जाती है। लेखक माहौल सेट करने में ही माहौल बिगाड़ देता है । आप किसी भी लेख के आख़िर तक पहुंचिये, बहुत कम ही होते हैं जिनसे आप ज्यादा जानकर निकलते हैं। नई बात के नाम पर एक दो बातें ही होती हैं। हर लेख यह मानकर नहीं लिखा जा सकता कि पढ़ने वाला पाठक उससे जुड़ी ख़बर से परिचित नहीं है इसलिए भूमिका में बता रहे हैं।  ख़ुद मैं भी इस ढांचे का कैदी बन गया हूं, कई बार लगता है कि कैसे ख़ुद को आज़ाद करूं।

जिन्हें पाकर पुरस्कार मुस्कुराया

साल 2000 के फरवरी माह का कोई दिन था। श्वेत-धवल वस्त्रों में लिपटी गौरवर्ण की काया, वात्सल्यमयी मुस्कान लिए विद्वान संपादक के समक्ष जैसे ही पहुंचा, उन्होंने बैठने का इशारा किया और सीधे पूछ लिया : कलम रखे हो। ग्रेजुएशन के बाद पहली नौकरी पाने के उत्साह से लबरेज मैंने स्वीकृति में सिर हिलाया और अपनी इंटरव्यू फाइल उनके सामने रख दी। जिसे सामने से हटाते हुए उन्होंने कहा : मार्कशीट से ज्यादा विश्वसनीय हमारा ज्ञान होता है। मुझे वही देखना है तुममें। ये लो कागज और जितने शब्द कह रहा हूँ, लिख डालो। विद्वान संपादक ने हिन्दी-अंग्रेजी के कुल 25 शब्द लिखवाये जिनमें से 20 सही थे। महज पन्द्रह मिनट के साक्षात्कार में ही मुहर लग गई कि मैं पत्रकार बनने के योगय हूं। राडियानुमा कार्पोरेटी पत्रकारिता के दौर में अब यह प्रयोग भले ही धूल चाट रहा हो लेकिन इसका खामियाजा पत्रकारिता को ही उठाना पड़ रहा है। 

बबन प्रसाद मिश्र

अन्याय की पहली सीख : एदुआर्दो गालेआनो

एदुआर्दो गालेआनो नहीं रहे। दुनिया में हर तरह के शोषण, गैरबराबरी और नाइंसाफी के खिलाफ लिखने-बोलने वाले इस बहादुर योद्धा पत्रकार और लेखक गालेआनो का एक और लेख। दुनिया जिस ढांचे पर चल रही है और इसके बारे में जो झूठ प्रचारित किया जाता है गालेआनो ने पूरे जीवन अपने लेखन में उसको रेशा रेशा उधेड़ दिया है – चाहे उनकी डायरीनुमा किताबें हों या लातीन अमेरिका (मेमोरीज ऑफ फायर) और दुनिया (मिरर्स) के इतिहास का पुनर्लेखन। उनका लेखन विडंबनाओं और व्यंग्यों का एक लंबा सिलसिला है। यहां पेश लेख यह उनकी किताब ‘पातास आरीबा’ से, अनुवाद पी. कुमार मंगलम का।  

‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के राइटर विकास स्वरूप विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बने

नई दिल्ली : प्रसिद्ध उपन्यासकार और राजनयिक विकास स्वरूप विदेश मंत्रालय के नए प्रवक्ता होंगे। बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेशी दौरे से लौटने के बाद 18 अप्रैल को स्वरूप यह कार्यभार ग्रहण करेंगे।

हिंदी संस्थान ने लखकों को झूठा-फ्रॉड साबित कर अपनी फोरेंसिक लैबोरोट्री भी खोल ली है…

Dayanand Pandey : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में इस बार पुरस्कार वितरण में धांधली भी खूब हुई है। इस धांधलेबाजी खातिर पहली बार उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने एक फर्जी फोरेंसिक लैब्रोटरी भी खोल ली है। तुर्रा यह कि बीते साल किसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में किसी ने याचिका दायर कर दी थी सो इस याचिका कर्ता के भय में लेब्रोटरी में खुद जांच लिया कि कौन सी किताब किस प्रेस से कैसे छपी है और इस बिना पर कई सारी किताबों को समीक्षा खातिर ही नहीं भेजा समीक्षकों को। और इस तरह उन्हें पुरस्कार दौड़ से बाहर कर दिया। क्या तो वर्ष 2014 की छपाई है कि पहले की है कि बाद की है। खुद जांच लिया, खुद तय कर लिया। ज़िक्र ज़रूरी है कि इस बाबत लेखक की घोषणा भी हिंदी संस्थान लेता ही है हर बार।