होश में आओ मीडिया घरानो, आग लग चुकी है!

लगता है, जिस वक्त की पिछले ढाई दशक से ईमानदार पत्रकारों, जुझारू मीडिया कर्मियों, जनपक्षधर संगठनों को बेसब्री से प्रतीक्षा थी, वह करीब आ रहा है। बात राष्ट्रीय सहारा की हो या दैनिक जागरण की, अब पेड न्यूज के पापियों, लाल कारपेट पर वारांगनाओं के डांस करा रहे सफेदपोश मीडिया धंधेबाजों से हिसाब-किताब बराबर करने का दौर धीरे-धीरे अंगड़ाई ले रहा है। 

जागरण में जुनून को मिसाल बना दो, तभी मशाल रोशन होगी

दैनिक जागरण पत्र ही नहीं मित्र की भाषा को दरकिनार कर जिन कर्मचारियों की मेहनत, लगन, कर्मठता, ईमानदारी के बलबूते आसमान की ऊंचाइयों को हिंदी भाषा का सर्वाधिक पठनीय अखबार कहलाने का तमगा अपने पास सुरक्षित रखने में कामयाब रहने वाला, आज अपने कर्मचारियों को ध्वस्त करने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। यही कर्मचारी दैनिक जागरण को अपना मित्र मानने की भूल पिछले 25 सालों से करते आ रहे हैं।

दैनिक जागरण के कर्मचारी अब आरपार की लड़ाई के मूड में, काली पट्टियां बांधी, 17 को हड़ताल

दैनिक जागरण प्रबंधन की कर्मचारी विरोधी नीतियों, दंडात्मक कार्रवाइयों, मजीठिया वेतनमान पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को न मानने आदि से नाराज कर्मचारी अब आमने सामने की लड़ाई में उतर चुके हैं। जागरण कर्मचारियों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक सीधे टकराव की लामबंदी के साथ नोएडा और दिल्ली में जागरण कर्मचारी आज पहली जुलाई को काली पट्टियां बांधकर काम कर रहे हैं। वह 17 जुलाई को 24 घंटे की हड़ताल पर रहेंगे। उसके बाद आगे के संघर्ष की रूपरेखा लागू की जाएगी। 

काली पट्टियां बांधकर दैनिक जागरण के नोएडा मुख्यालय पर आंदोलन की राह पर चल पड़े जुझारू कर्मचारी

अनिल ठाकुर की पुस्तक में समाजवादी आंदोलन को समझने का बेहतर प्रयास : प्रो.आनंद

नई दिल्ली : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अवकाश प्राप्त और स्वराज अभियान के  संयोजक प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि समाजवादी आंदोलन की भूमिका भारत की राजनीति में स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद बहुत महत्वपूर्ण है। समाजवादी विचारधारा ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को एक नई दिशा देने का काम किया है। 

खंडवा में पत्रिका के खिलाफ एकजुट पत्रकारों के संघर्ष का बिगुल बजा, सीएम के नाम एसडीएम को ज्ञापन

खंडवा में मई दिवस पर एसडीएम को मजीठिया वेतनमान से संबंधित ज्ञापन देते पत्रकार

खंडवा : पत्रिका अखबार के जो कर्ता-धर्ता अपने आप को जनता का तथाकथित हितैषी बताकर नई-नई मुहिम चलवाते हैं और मुद्दे उठवाते हैं उसकी सच्चाई आप भी जान लीजिए। पत्रकारों के हक में लागू मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक प्रमुख समाचारपत्रों को एक निर्धारित राशि से वेतनमान देने के आदेश दिए गए हैं। इसके खिलाफ पत्रिका सहित कुछ अखबार वाले कोर्ट गए। बाद में कोर्ट ने पत्रकारों के हक में फैसला दे दिया। फिर क्या था। पत्रिका अखबार ने अपनी मनमानी शुरू कर दी। पत्रकारों से एक फॉर्मेट पर साइन करवाए गए कि हमें मजीठिया के मुताबिक सैलरी नहीं चाहिए। जिन पत्रकारों ने फॉर्मेट पर हस्ताक्षर कर दिए, उन्हें तो बख्श दिया बाकी को एन-केन-प्रकारेण प्रताड़ित कर बाहर करने की साजिशें रची गईं। यहां-वहां ट्रांसफर किए गए।

आंदोलन की रोशनी सियासी अंधेरे में कैसे बदल गई ?

अगर पत्रकार रहते हुये आशीष खेतान कारपोरेट घरानों के प्यादे बनने से नहीं कतरा रहे थे। अगर पंकज गुप्ता हर हाल में पार्टी फंड बढ़ाने के लिये हर रास्ते को अपनाने के लिये तैयार थे। अगर कुमार विश्वास कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के बीच झूलते हुये केजरीवाल को नजर आ रहे थे। अगर सत्ता की मद में राखी बिडला के सरोकार अपने परिवार तक से नहीं बचे हैं। अगर योगेन्द्र यादव हर हाल में अपने समाजवादी चिंतन तले समाजवादी कार्यकर्ताओं को संगठन के अहम पदों पर बैठाने के लिये बैचेन थे। अगर प्रशांत भूषण पार्टी के भीतर अपनी डोलती सत्ता को लेकर बैचेन थे। अगर शांति भूषण के सपनो की आम आदमी पार्टी उनके वैचारिकी के साथ खड़ी नहीं हो पा रही थी। 

कनहर नदी को बहने दो, हमको जिन्दा रहने दो

कनहर बांध विरोधी आन्दोलन के धरना स्थल से भेजी गई किसान आदिवासी विस्थापित एकता मंच, सिंगरौली की सदस्य एकता की विशेष रिपोर्ट  सरकारी दमन से जूझने के लिए उमड़े हजारो आंदोलनकारी महिला-पुरुष 1976 में जब पहली बार कनहर और पागन नदी के संगम स्थल पर बांध बनाए जाने की घोषणा हुयी, तभी से आस पास …