मोदीखाता (एक) : चले थे गंगा साफ करने, हो गई वो और प्रदूषित!

ये मोदीखाता सीरीज़ की पहली कड़ी है. इसमें बात गंगा सफाई की करेंगे. जल्दबाज़ी के शौकीन दोस्त आगे बढ़ सकते हैं, ठहरकर समझने का हौसला रखनेवाले दो-चार मिनट दे सकते हैं. बड़ी मेहनत से लिखा जा रहा है, आपसे थोड़ा ध्यान देने की दरख्वास्त है. मैं पहले ही स्पष्ट कर दूं कि मेरी खोजबीन का …

‘इंडिया टीवी’ कार्यकाल में अभिषेक उपाध्याय क्यों न कह सके- रजत शर्मा के लिए ‘पद्मभूषण’ रिश्वत!

ओम थानवी हरिदेव जोशी विवि के कुलपति बन रहे हैं। इस विश्वविद्यालय को राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने बंद कर दिया था। गहलोत लौटे और अब फिर से खुले विश्वविद्यालय की बागडोर ओम थानवी को सौंप दी गई। कई लोगों को इस एलान के बाद उदरशूल हो गया। उनके दर्द को समझ पाना मुश्किल नहीं …

The first casualty, when war comes, is truth!

Nitin Thakur : युद्ध की चाह रखनेवालों को बधाई! आपके प्रिय चैनल जो कल्पना में गढ़ रहे थे वो असल में हो रहा है. इमरान खान पाकिस्तान में परमाणु हथियारों पर नियंत्रण रखनेवाली बैठक के साथ बैठक में हैं. भारत के तीनों सेनाओं के चीफ सुबह से रक्षामंत्री, गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के साथ अलग-अलग बैठकों …

डरी-सहमी और दरबारी पत्रकारिता को शर्मिंदगी से बचाने के लिए एन राम को शुक्रिया!

Nitin Thakur : एन राम ने मोदी सरकार के सामने वही स्थिति खड़ी कर दी है जो इंडिया टुडे ने शर्म अल शेख मामले में मनमोहन सरकार की बना दी थी। डरी-सहमी और दरबारी पत्रकारिता को शर्मिंदगी से बचाने के लिए एन राम का शुक्रिया किया जाना चाहिए। उनकी सलाह वर्तमान रक्षामंत्री को मान लेनी …

शिवसेना सांसद ही शिवसेना संस्थापक पर फिल्म लिखेगा तो निष्पक्षता की उम्मीद क्यों रखें!

Nitin Thakur : शिवसेना का सांसद ही शिवसेना के संस्थापक पर फिल्म लिखेगा तो उससे आप कितना निष्पक्ष रहने की उम्मीद करेंगे? तो बस, संजय राउत ने बाल ठाकरे के नाम पर जो एक ‘पृथ्वीराज रासो’ रच दिया है उसी का नाम फिल्म ‘ठाकरे’ है, मगर फिल्म बनानेवालों से एक गफलत हो गई। पूरी फिल्म …

नितिन ठाकुर ने इस नए लांच होने वाले हिंदी न्यूज चैनल के साथ नई पारी शुरू की

आजतक न्यूज चैनल से इस्तीफा देने वाले सोशल मीडिया के चर्चित लेखक और ब्लागर नितिन ठाकुर ने नई पारी की शुरुआत कर दी है. उन्होंने नए लांच होने वाले न्यूज चैनल टीवी9 हिंदी में ज्वाइन किया है. वे यहां चैनल के डिजिटल विंग में काम करेंगे.

नितिन गडकरी एनडीए के ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ बन सकते हैं! देखें वीडियो

Nitin Thakur : फिल्म “एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर” और किताब “एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर” में कितना फर्क है ये तो रिलीज़ के बाद ही लिखा-कहा जा सकेगा, लेकिन पता चल रहा है कि राफेल पर घेराबंदी के बाद नागपुर के गलियारों में नितिन गडकरी का नाम बैकअप पीएम के तौर पर खूब लिया जा रहा है। उन्होंने …

नितिन ठाकुर ने आजतक को अलविदा कहा

चर्चित ब्लागर, सोशल मीडिया एक्टिविस्ट और युवा लिक्खाड़ नितिन ठाकुर ने आजतक न्यूज़ चैनल को अलविदा कह दिया है। इसका ऐलान उन्होंने फेसबुक पर किया है। वे फिलहाल अपने यूट्यूब चैनल के लिए काम करेंगे।

नितिन ठाकुर भी आए यूट्यूब पर, कुछ बेहतरीन सुनने के लिए जरूर देखें

जटिल और पेचीदा मुद्दे आम जन को समझ में आएं इसके लिए सोशल मीडिया पर नई मुहिम शुरू की गई है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने वाले हैं युवा पत्रकार नितिन ठाकुर और उनके साथी। ‘Nitin Notes’ नाम से शुरू किया गया ये यूट्यूब चैनल लोगों तक सरल भाषा में जटिल से जटिल मुद्दों को …

‘आजतक’ में कार्यरत नितिन ठाकुर को मिला प्रमोशन, एसोसिएट सीनियर प्रोड्यूसर बने

आजतक न्यूज चैनल में दो वर्षों से ज़्यादा समय से कार्यरत युवा पत्रकार नितिन ठाकुर को प्रमोशन मिला है. उन्हें एडिटोरियल प्रोड्यूसर से प्रमोट करके एसोसिएट सीनियर प्रोड्यूसर बना दिया गया है.

राजदीप चाहते तो प्रणब मुखर्जी से माफी मांगने वाला हिस्सा इंटरव्यू की एडिटिंग के दौरान हटवा सकते थे!

Nitin Thakur : प्रभु चावला का एक प्रोग्राम ‘सीधी बात’ आजतक पर आता था। एक दिन प्रभु चावला ने अपने कोंचनेवाले अंदाज़ में एक नेता को छेड़ दिया। नेताजी ने गरम होकर ऑनएयर ऐसा बहुत कुछ कह डाला जो आगे ख़बर भी बना। अगले दिन एक लड़का दूसरे को कह रहा था- ‘कल तो उस नेता ने प्रभु चावला को चुप ही करा दिया। ऐसी-ऐसी सुनाई कि प्रभु चावला मुंह देखता रह गया..कुछ बोल भी नहीं सका। इन पत्रकारों को तो ऐसे ही सुनानी चाहिए’ दूसरा लड़का चुप खड़ा था। पहले वाला और भी बहुत कुछ बोला।

यशवंत पर हमला करने वाले इन दो अपराधियों को पत्रकार कहना ही गलत है : नितिन ठाकुर

Nitin Thakur : भड़ास एक महाप्रयोग था, Yashwant Singh का. जो सबकी खबरें लेते थे उनकी खबरें लेने-देने का मंच. पत्रकारों को कोसने के दौर में उनकी बदहाली को भड़ास ने खूब उठाया. अब तीन ही दिन पहले यशवंत के साथ दो लोगों ने इसलिए मारपीट कर दी क्योंकि उन्होंने दोनों के खिलाफ अलग-अलग मौकों पर खबर छाप दी थी. वैसे तो उन दोनों को पत्रकार कहना ही गलत है क्योंकि उन्होंने कलम छोड़ हाथ उठाया लेकिन पेशेगत पहचान की वजह से उनको पत्रकार ही कहा जाएगा.

हमलावर नंबर एक- भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी

एनडीटीवी का मालिक दूध का धुला ना हो तो भी सरकार को सबसे ज़्यादा दिक्कत उसी से है!

Nitin Thakur : सब जानते हैं कि एनडीटीवी की छंटनी किसी पूंजीपति के मुनाफा बढ़ाने का नतीजा नहीं है. वो किसी नेटवर्क18 या ज़ी ग्रुप की तरह मुनाफे में होने के बावजूद लोगों को नहीं निकाल रहा. एनडीटीवी एक संस्थान के बिखरने की कहानी है. यही वजह है कि उनका कोई कर्मचारी मालिक को लेकर आक्रोशित नहीं है. वो जानते हैं कि उनसे ज़्यादा ये मुसीबत संस्थान के प्रबंधन की है. बावजूद इसके किसी को तीन महीने तो किसी को छह महीने कंपन्सेशन देकर विदा किया जा रहा है.

रंगदार संपादक और राष्ट्रवादी शोर : टीवी जर्नलिज्म आजकल….

मोदी के राज में कानून का डंडा बहुत सेलेक्टिव होकर चलाया जा रहा है…

Nitin Thakur : एनडीटीवी प्रमोटर पर छापे के दौरान ‘ज़ी’ अजीब सी खुशी के साथ खबर चला रहा था. शायद उन्हें इस बात की शिकायत है कि जब उनकी इज्ज़त का जनाज़ा निकल रहा था तब उनका साथ किसी ने नहीं दिया. ज़ी का दर्द एक हद तक सही भी है. तब सभी ने चौधरी और अहलूवालिया का स्टिंग बिना ऐसे कुछ लिखे चलाया था कि “ये पत्रकारिता पर हमला है”. अब ज़ी हर बार जश्न मनाता है. जब एक दिन के एनडीटीवी बैन की खबर आई तो भी.. जब छापेमारी की खबर आई तो भी. उसे लगता होगा कि कुदरत ने आज उसे हंसने का मौका दिया है तो वो क्यों ना हंसे. बावजूद इसके सच बदल नहीं सकता कि उनका मामला खबर ना दिखाने के लिए संपादकों द्वारा रंगदारी की रकम तय करने का था और ये सब एक बिज़नेसमैन की वित्तीय अनियमितता का केस है जिसमें बैंक का कर्ज़ ना लौटाना प्रमुख है.

किसानों के पेशाब पीने के बाद भी नहीं पिघलेगी मोदी सरकार

Nitin Thakur : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस दिन कंगारुओं के प्रधानमंत्री के साथ अक्षरधाम में पिकनिक मना रहे थे, क्या उन्हें इल्म है कि ठीक उसी दिन नॉर्थ एवेन्यू पर इस देश के चार किसान नंग धड़ंग होकर प्रदर्शन कर रहे थे? वो पागल नहींं थे.. और ना ही वो किसी पब्लिसिटी के लिए आए थे.. वो तो बेचारे तमिलनाडु के अपने गांवों से हज़ारों किलोमीटर दूर पत्थर के इस शहर में अपनी गुहार लगाने पहुंचे थे।

चिंटू जी, पत्रकार बोलने के लिए नहीं, बुलवाने के लिए ही होता है!

Nitin Thakur : जब एक पत्रकार कोई सवाल करता है तो वो इस उम्मीद में नहीं करता कि सामनेवाला चुप हो जाए। वो वाकई चाहता है कि जवाब आए। जवाब आता है और अगर जवाब देनेवाला नेता हो तो बड़े जुमलों और भारी भाषा के साथ पूरी सफाई पेश करता है। इसके बाद पत्रकार अगले सवाल की तरफ बढ़ता है क्योंकि उसका काम हो चुका होता है। इसे कुछ चिंटू ये कह कर प्रचारित करते हैं कि वाह अमुक नेता ने पत्रकार की क्या बोलती बंद कर दी.. चिंटू जी, पत्रकार बोलने के लिए नहीं बुलवाने के लिए ही होता है।

रवीश कुमार को बिना सुनवाई के ही फांसी पर टांग देना चाहिए!

Nitin Thakur : मुझे बिलकुल समझ नहीं आ रहा है कि ये सरकार रवीश कुमार को इतनी मोहलत क्यों दे रही है। उन्हें तो बिना सुनवाई के ही फांसी पर टांगा जाना चाहिए। आखिर किसी पत्रकार के भाई का नाम सेक्स रैकेट चलाने में आए और फिर भी पत्रकार को खुला घूमने दिया जाए ऐसा कैसे हो सकता है? पहले तो उनके भाई ब्रजेश पांडे ने लहर के खिलाफ जाकर कांग्रेस ज्वाइन कर ली.. ऊपर से टिकट लेकर विधायकी लड़ने का जुर्म किया.. इसके बाद भी ना ब्रजेश पांडे में राष्ट्रवाद ने उफान मारा और ना ही उन्हें देश के हिंदुओं की कोई फिक्र हुई.. कांग्रेस में ही उपाध्यक्ष का पद लेकर राजनीति जारी रखी।

क्या रवीश के शो की टीआरपी ना आने की वजह से किसी को दस्त लग सकते हैं?

Nitin Thakur : क्या रवीश कुमार के शो की टीआरपी ना आने की वजह से किसी को दस्त लग सकते हैं? जी हां, लग सकते हैं। एक जाने-माने दरबारी विदूषक (विदूषक सम्मानित व्यक्ति होता है, दरबारी विदूषक पेड चाटुकार होता है) का हाजमा खराब हो गया और उसने मीडिया पर अफवाह फैलाने वाली एक वेबसाइट का मल रूपी लिंक अपनी पोस्ट पर विसर्जित कर दिया। कई बार लोग जो खुद नहीं कहना चाहते या लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते वो किसी दूसरे के लिखे हुए का लिंक डाल कर बता देते हैं।

मीडिया हो या आरबीआई, सभी इस मोदी सरकार से थोड़ा डर कर चल रहे हैं : राहुल गांधी

राहुल गांधी का आज का भाषण उन्हें बहुत आगे ले जाएगा। उन्होंने दिल्ली में खड़े होकर जो लाइन कांग्रेस और बीजेपी के बीच खींची है अगर उसे कायम रख पाए तो कोई वजह नहीं कि कांग्रेस की अगली जीत के नायक वही हों। कई और ठीक-गलत बातों से हट कर उन्होंने आज जो बार-बार कहा, वो था ‘डरो मत’। ना राहुल ने यूपीए के विकास कार्य गिनाए, ना राहुल ने हिंदू-मुस्लिम की बात की, ना राहुल ने एनडीए के घोटाले बताए… उन्होंने जो कहा वो सिर्फ इतना था कि बीजेपी- संघ परिवार ‘डराओ’ की लाइन पर चलते हैं जबकि कांग्रेस का हाथ ‘डरो मत’ कहता है। वोटर ऐसी सीधी बात ही समझता है, जबकि सीधे-सादे इन दो शब्दों के अर्थ कहीं ज़्यादा गहरे और सच्चे हैं।