हमें यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि हिंदी के महत्वपूर्ण कवि वीरेन डंगवाल की संपूर्ण कविताओं का संकलन ‘कविता वीरेन’ प्रेस में है और आगामी 20 जून से यह बिक्री के लिए उपलब्ध हो जाएगा. इस संकलन की लम्बी भूमिका वीरेन जी के मित्र और हिंदी के महत्वपूर्ण कवि मंगलेश डबराल ने …
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शीघ्र प्रकाश्य ‘कविता वीरेन’ में मंगलेश डबराल की भूमिका पढ़िए
‘कविता वीरेन’ में मंगलेश डबराल की भूमिका…. ‘इन्हीं सड़कों से चल कर आते हैं आततायी/ इन्हीं सड़कों से चल कर आयेंगे अपने भी जन।’ वीरेन डंगवाल ‘अपने जन’ के, इस महादेश के साधारण मनुष्य के कवि हैं। वे उन दूसरे प्राणियों और जड़-जंगम वस्तुओं के कवि भी हैं जो हमें रोज़मर्रा के जीवन में अक्सर …
मैं वीरेन डंगवाल से नहीं, उनकी छाया से मुखातिब हुआ…
Avinash Mishra : मैं वीरेन डंगवाल की छाया से मिला। यह अलग तथ्य है कि उनकी कविता से आश्नाई पुरानी थी। लेकिन इस आश्नाई के साये में कभी उन तलक पहुंचने की सूरत नहीं बनी। साल 2009 में जन संस्कृति मंच के एक तीन दिवसीय फिल्म समारोह को देखने जब मैं दिल्ली से लखनऊ तक गया था, तब कहां पता था कि महज हवा बदलने के लिए की गई यह यात्रा वीरेन दा से मेरी पहली मुलाकात का सबब बनेगी। वहां ‘हिरावल’ समूह द्वारा प्रस्तुत वीरेन दा की कविता ‘हमारा समाज’ का प्रभाव अब भी कभी-कभी याद आता है। यह पढ़ते ही जुबान पर चढ़ जाने वाली कविता है। वीरेन दा की कविता-सृष्टि में ऐसी कविताओं की संख्या और उनका पाठकों पर पड़ने वाला प्रभाव समकालीन हिंदी कविता में अद्वितीय है।
वीरेन डंगवाल – ‘रहूंगा भीतर नमी की तरह’
-मनोज कुमार सिंह-
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि व पत्रकार वीरेन डंगवाल की स्मृति में उनकी कर्मस्थली बरेली में उन्हें याद करने के लिए देश भर से लेखक व संस्कृतिकर्मी 20 व 21 फरवरी को जुटे। ‘रहूंगा भीतर नमी की तरह’ – यह काव्य पंक्ति है वीरेन की कविता का और इस आयोजन का नाम भी यही था। दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच और वीरेन डंगवाल स्मृति आयोजन समिति की ओर से बरेली कॉलेज सभागार में किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत कवि वीरेन डंगवाल के व्यक्तित्त्व और कविताओं पर केन्द्रित एक पुस्तक ‘रहूँगा भीतर नमी की तरह’् के विमोचन से हुआ जिसे जसम उत्तर प्रदेश के सचिव युवा आलोचक प्रेमशंकर ने संपादित किया है।
तब वीरेन डंगवाल ने कहा था : ….गण्यमान्य लोगों की धारा मेरी धारा नहीं है
Pankaj Chaturvedi : तुम्हारे लिए कोई एक शब्द इस्तेमाल करने की विवशता हो, तो मैं कहूँगा : अकृत्रिम। यही सिफ़त तुम्हें ज़िन्दगी के बेहद क़रीब लायी और तुम उसकी महिमा को पहचान सके। एक हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर मनुष्यता को पहुँचाने के लिए सड़क बनाते शहीद हुए मज़दूरों की स्मृति में कृतज्ञता से नतमस्तक होकर तुमने लिखा : ”कितनी विराट है यहाँ रात / घुल गये जिसमें हिम-शिखर / नमक के ढेलों की तरह / सामने के पहाड़ अन्धकार में / दीखती हैं नीचे उतरती एक मोटर गाड़ी की / निरीह बत्तियाँ / विराट है जीवन।”
वीरेन डंगवाल स्मरण : वीरेन कविता को इतना पवित्र मानता है कि अक्सर उसे लिखता ही नहीं है…
Pankaj Chaturvedi : उत्सवधर्मिता तुम्हें रास नहीं आती थी। तुम अपनी डायरी के पहले पन्ने पर ‘धम्मपद’ में संरक्षित बुद्ध का यह वचन लिखते थे : ”को नु हासो किमानन्दो, निच्चं पज्जलिते सति”—-यानी कैसी हँसी, कैसा आनन्द, जब सब कुछ निरन्तर जल रहा है। इसलिए जो तुम्हारा मस्ती-भरा अंदाज़ दिखता था, वह तुम थे नहीं! वह एक आवरण था, जिसमें तुम अपने अंतस की आभा छिपाये थे। जैसा कि ‘प्रसाद’ कहते हैं—-”एक परदा यह झीना नील छिपाये है जिसमें सुख गात।” असद ज़ैदी ने ठीक लिखा है कि उनकी नहूसत और तुम्हारी चपलता दरअसल एक ही धातु से निर्मित थी।
वीरेन दा की कविता ‘इतने भले न बन जाना साथी’ का यशवंत ने किया पाठ, देखिए वीडियो
Yashwant Singh : गुरु, दिल्ली आते ही एक प्रयोग कर दिया मैंने. अपने गुरुवर और प्रिय कवि वीरेन डंगवाल को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी एक कविता का पाठ किया. इस सबको रिकार्ड कराया. ये पहला प्रयोग है. अगर आप लोग सराहेंगे तो आगे वीरेनदा समेत नए पुराने ढेरों कवियों की कविताओं का यूं ही पाठ करके उसका डिजिटलाइजेशन किया जाएगा और बड़े पाठक समूह तक पहुंचाया जाएगा. आप सभी मित्रों का फीडबैक चाहूंगा, इस वीडियो पर. https://goo.gl/sU1gbe
वीरेन दा एक व्यक्ति नहीं, संस्था थे
वीरेन दा का निधन पत्रकारिता ही नहीं, समूचे हिंदी साहित्य जगत की एक बड़ी क्षति है। वीरेन दा मेरे लिए तो एक पत्रकार और साहित्यकार से बहुत आगे बढ़कर ऐसे गुरू थे, जो अपने शिष्य को कार्य क्षेत्र की कमियों, खूबियों और बारीकियों से ही अवगत नहीं कराते बल्कि जीवन में आगे बढ़ने की शिक्षा व्यवहारिक धरातल पर देते हैं। मुझे जैसे हजारों लोगों को वीरेन दा ने बहुत कुछ सिखाया है।
मैं 2014 के जून में वीरेनदा को कैंसर के दौरान पहली बार देखकर भीतर से हिल गया था
: वीरेनदा का जाना और एक अमानवीय कविता की मुक्ति : वीरेन डंगवाल यानी हमारी पीढी में सबके लिए वीरेनदा नहीं रहे। आज सुबह वे बरेली में गुज़र गए। शाम तक वहीं अंत्येष्टि हो जाएगी। हम उसमें नहीं होंगे। अभी हाल में उनके ऊपर जन संस्कृति मंच ने दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक कार्यक्रम करवाया था। उनकी आखिरी शक्ल और उनसे आखिरी मुलाकात उसी दिन की याद है। उस दिन वे बहुत थके हुए लग रहे थे। मिलते ही गाल पर थपकी देते हुए बोले, ”यार, जल्दी करना, प्रोग्राम छोटा रखना।” ज़ाहिर है, यह तो आयोजकों के अख्तियार में था। कार्यक्रम लंबा चला। उस दिन वीरेनदा को देखकर कुछ संशय हुआ था। थोड़ा डर भी लगा था। बाद में डॉ. ए.के. अरुण ने बताया कि जब वे आशुतोष कुमार के साथ वीरेनदा को देखने उनके घर गए, तो आशुतोष भी उनका घाव देखकर डर गए थे। दूसरों से कोई कुछ कहता रहा हो या नहीं, लेकिन वीरेनदा को लेकर बीते दो साल से डर सबके मन के भीतर था।
जाने-माने कवि और पत्रकार वीरेन डंगवाल का बरेली में निधन
पिछले कई वर्षों से कैंसर से जूझ रहे हिंदी के जाने माने कवि और पत्रकार वीरेन डंगवाल ने आज सुबह चार बजे बरेली में अंतिम सांस ली. पिछले दिनों उन्हें बरेली प्रवास के दौरान गले की नस से ब्लीडिंग होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अमर उजाला बरेली के संपादक दिनेश जुयाल ने आज सुबह पांच बजे फेसबुक पर स्टेटस अपडेट कर वीरेन डंगवाल के न रहने के बारे में जानकारी दी. दिनेश जुयाल लिखते हैं: ”वीरेन दा नहीं रहे. सुबह 4 बजे एस आरएमएस में सांसे बंद हो गयीं. पिछले रविवार को ही अपने घर बरेली आये थे और सोमवार से इसी अस्पताल के आईसीयू में थे. अंत्येष्टि आज शाम चार बजे सिटी श्मशान में.”
वीरेन डंगवाल की तबीयत खराब, बरेली में भर्ती, गर्दन की क्षतिग्रस्त नस का आपरेशन हुआ
कैंसर से पीड़ित जाने-माने कवि और पत्रकार वीरेन डंगवाल की बीती रात बरेली में तबीयत काफी खराब हो गई. गले की एक नस जो काफी डैमेज हो गई है, रेडियोथिरेपी-कीमियोथिरेपी के कारण, से अचानक रक्स्राव होने लगा. खून रुकने का नाम नहीं ले रहा था. तब उन्हें बरेली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनका रात में ही आपरेशन हुआ जिसमें काफी हद तक क्षतिग्रस्त नस को ठीक कर खून रोका जा सका.
जन संस्कृति मंच ने हिंदी के अनूठे कवि Virendra Dangwal की उपस्थिति में एक आत्मीय आयोजन किया
जन संस्कृति मंच ने हिंदी के अनूठे कवि Virendra Dangwal यानि वीरेनदा की उपस्थिति में एक आत्मीय आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते Asad Zaidi ने सबसे पहले Mangalesh Dabral को याद किया, जो अब धीरे-धीरे स्वस्थ हो रहे हैं और जिनके बिना यह आयोजन अधूरा लग रहा था। फिर Uday Prakash को याद किया और कहा कि जब हम उदय की तरफ़ से पूरी तरह निराश हो चुके थे, उसने इस भयानक समय में, साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाकर हम सबको ख़ुश कर दिया।