मुस्लिम होना गुनाह है क्या?

विकिपीडिया पर जवाहर लाल नेहरू को मुस्लिम लिख देने से कांग्रेसी भड़के हुए नजर आ रहे हैं। हंगामे के चलते नेहरू-गांधी खानदान के अतीत को जानने की लोगों में एक बार फिर उत्सुकता नजर आ रही है, इसलिए इस खानदान के अतीत पर एक नजर डालते हैं। लोकप्रियता एक सीमा लांघ जाये, तो फिर लोकप्रिय व्यक्ति के जीवन में व्यक्तिगत कुछ नहीं रहता। जनता सब कुछ जानना चाहती है और अगर, जनता को सटीक जानकारी न दी जाये, तो तमाम तरह की भ्रांतियां जन्म ले लेती हैं। नेहरू-गांधी खानदान के संबंध में भी ऐसा ही कुछ है। इस खानदान के व्यक्तियों से जुड़ी घटनायें सार्वजनिक न होने से कई तरह की अफवाहें हमेशा उड़ती रहती हैं। चूँकि भारतीय राजनीति में यह खानदान आज़ादी के समय से ही महत्वपूर्ण भूमिका में रहा है और लगातार बना हुआ है, इसलिए अफवाहें भी लगातार बनी रहती हैं। अफवाहों के आधार पर एक वर्ग इस खानदान के व्यक्तियों को त्यागी और महापुरुष सिद्ध करता रहा है, तो दूसरा पक्ष ऐसी अफवाहें फैलाता रहता है, जिससे इस खानदान के व्यक्तियों का सम्मान क्षीण हो जाये।

‘वेलकम टू कराची’ की ट्रेलर लॉन्चिग में अरशद वारसी ने संवाददाता से की बदसुलूकी

मुंबई : कॉमेडी फिल्म ‘वेलकम टू कराची’ का ट्रेलर लॉन्च करने के मौके पर फिल्म अभिनेता अरशद वारसी और जैकी भगनानी फिल्म की पूरी टीम के साथ मुंबई के एक सिनेमाघर में पहुंचे. इस दौरान अभिनेता अरशद वारसी ने एक बात को लेकर रिपोटर को तंज कसा- ये ‘फिलम’ क्या होता है भाई!

राइट टू रिकॉल ही है दान वापसी!

दिल्ली की सत्तासीन ‘‘आम आदमी पार्टी’’ जहां एक ओर 14 अप्रेल को प्रस्तावित विरोधी गुट के आयोजन ‘स्वराज संवाद’ को लेकर असमंजस में है, वहीं ‘कार-लोगो’ सहित आर्थिक डॉनेशन की वापसी की कवायद से आप की हालत उस मकड़ी की तरह स्वनिर्मित मकड़जाल में फंसकर दम तोड़ने की तरह दिखाई दे रही है। आप नेता आशुतोष का कथन – ‘‘दान और उपहार कभी वापस नहीं होता’’, स्पष्टतः आप की बुनियाद को हिलती हुई इमारत को ढहाने के लिए पर्याप्त है। 

ऐसा तो किसी ने सोचा तक नहीं था

आखिर दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने 21 मार्च 2015 को मेरठ के हाशिमपुरा में 1987 में हुए नरसंहार के 16 अभियुक्त पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया. इस नरसंहार में एक ही संप्रदाय के 40 से अधिक लोग मारे गए थे. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की रिज़र्व पुलिस पीएसी के जवानों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष संदिग्ध पुलिसकर्मियों की पहचान साबित करने में नाकाम रहा. तो फिर उन 40 से ज़्यादा मनुष्यों को किसने मारा ? क्या इस प्रश्न का उत्तर इस व्यवस्था के पास है ? लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि आरोपियों को सख्त सजा होगी, लेकिन उन्हें साक्ष्य के आभाव में बरी कर दिया जाएगा, ऐसा किसी ने सोचा तक नहीं था. कुछ लोग मान रहे थे कि कम से कम आजीवन कारावास तो होगा ही.